Tarkash (Hindi)
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Read between March 15 - March 17, 2022
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उर्दू पर पैग़ंबरी (परीक्षा लेनेवाला, कठोर) वक़्त पड़ा। यू.पी. के ज़मींदारी abolition में एक बारीकी यह थी कि उर्दू कल्चर भी उसके साथ उड़ गई। लेकिन पंजाब से जो हिंदू-सिख शरणार्थी फ़िल्मकार आए उन्होंने तो उर्दू ही पढ़ी थी। इसके अलावा पहली बोलती फ़िल्म ‘आलम-आरा’ से लेकर 1947 तक फ़िल्मों की ज़बान उर्दू ही थी। संवादों की चुस्ती और प्रवाह और तहज़ीबी नफ़ासत और फ़िल्मी नग़्मों की दिलकशी जो न्यू थिएटर्स के आरज़ू लखनवी की देन थी, उसकी बदौलत आज़ादी के बाद भी हालाँकि उर्दू सरकारी तौर पर ख़त्म कर दी गई, फ़िल्मों में इस सख़्तजान ख़ानाबदोश ज़बान का बोलबाला रहा लेकिन वह हिंदी कहलाई (यानी एक पूरी ज़बान को ...more
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जावेद अख़्तर मदर टेरेसा से कहते हैं— मुझको तेरी अज़मत3 से इनकार नहीं है (लेकिन) तूने कभी ये क्यों नहीं पूछा किसने इन बदहालों को बदहाल किया है
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हमको उठना तो मुँह अँधेरे था लेकिन इक ख़्वाब हमको घेरे था
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अब तक है कोई बात मुझे याद हर्फ़-हर्फ़ 1 अब तक मैं चुन रहा हूँ किसी गुफ़्तगू2 के फूल