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Kindle Notes & Highlights
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाए सोना तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है
अकसर वो कहते हैं वो बस मेरे हैं अकसर क्यूँ कहते हैं हैरत होती है
चार लफ़्ज़ों में कहो जो भी कहो उसको कब फ़ुरसत सुने फ़रियाद सब तल्ख़ियाँ1 कैसे न हों अशआर2 में हम पे जो गुज़री हमें है याद सब
जो पर समेटे तो इक शाख़ भी नहीं पाई खुले थे पर तो मिरा आसमान था सारा
लो देख लो ये इश्क़ है ये वस्ल1 है ये हिज्र 2 अब लौट चलें आओ बहुत काम पड़ा है
बेदस्तोपा3 हूँ आज तो इल्ज़ाम किसको दूँ कल मैंने ही बुना था ये मेरा ही जाल है
ज़ख़्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
एक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूँढता फिरा उसको वो नगर-नगर तनहा
नेकी इक दिन काम आती है हमको क्या समझाते हो हमने बेबस मरते देखे कैसे प्यारे-प्यारे लोग