Tarkash (Hindi)
Rate it:
Kindle Notes & Highlights
Read between June 30, 2020 - January 21, 2021
47%
Flag icon
गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदुरा हुआ जाती रही वो लम्स 1 की नर्मी, बुरा हुआ 1स्पर्श
47%
Flag icon
बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वो हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
47%
Flag icon
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
47%
Flag icon
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था मिरे अंजाम क...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
47%
Flag icon
मरीज़े-ख़्वाब1 को तो अब शफ़ा2 है मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
50%
Flag icon
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
51%
Flag icon
कौन-सा शे’र सुनाऊँ मैं तुम्हें, सोचता हूँ नया मुब्हम1 है बहुत और पुराना मुश्किल
54%
Flag icon
ख़ुदकुशी क्या दुःखों का हल बनती मौत के अपने सौ झमेले थे
58%
Flag icon
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है
58%
Flag icon
आओ अब हम इसके भी टुकड़े कर लें ढाका, रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद
58%
Flag icon
अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है
61%
Flag icon
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
63%
Flag icon
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
63%
Flag icon
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
Vaibhav Vijay liked this
63%
Flag icon
न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है
65%
Flag icon
ख़्वाब के गाँव में पले हैं हम पानी छलनी में ले चले हैं हम
65%
Flag icon
क्यूँ हैं कब तक हैं किसकी ख़ातिर हैं बड़े संजीदा3 मसअले4 हैं हम
65%
Flag icon
गली में शोर था मातम था और होता क्या मैं घर में था मगर इस ग़ुल1 में कोई सोता क्या
65%
Flag icon
ग़म होते हैं जहाँ ज़हानत होती है दुनिया में हर शय1 की क़ीमत होती है
Vaibhav Vijay liked this
66%
Flag icon
इक कश्ती में एक क़दम ही रखते हैं कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है
66%
Flag icon
आज तारीख़1 तो दोहराती है ख़ुद को लकिन इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते हैं।
66%
Flag icon
कम से कम उसको देख लेते थे अब के सैलाब में वो पुल भी गया
Vaibhav Vijay liked this
67%
Flag icon
हम दोनों जो हर्फ़2 थे हम इक रोज़ मिले इक लफ़्ज़3 बना और हमने इक माने4 पाए फिर जाने क्या हम पर गुज़री और अब यूँ है तुम इक हर्फ़ हो इक ख़ाने में मैं इक हर्फ़ हूँ इक ख़ाने में बीच में कितने लम्हों के ख़ाने ख़ाली हैं फिर से कोई लफ़्ज़ बने और हम दोनों इक माने पाएँ ऐसा हो सकता है लेकिन सोचना होगा इन ख़ाली ख़ानों में हमको भरना क्या है।
69%
Flag icon
ये ग़म मेरी ज़रूरत है मैं अपने ग़म से ज़िंदा हूँ
70%
Flag icon
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद1 सब मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
71%
Flag icon
जो पर समेटे तो इक शाख़ भी नहीं पाई खुले थे पर तो मिरा आसमान था सारा
71%
Flag icon
वो साँप छोड़ दे डसना ये मैं भी कहता हूँ मगर न छोड़ेंगे लोग उसको गर न फुंकारा।
71%
Flag icon
लो देख लो ये इश्क़ है ये वस्ल1 है ये हिज्र 2 अब लौट चलें आओ बहुत काम पड़ा है
71%
Flag icon
मैं ख़ुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है जिसका जवाब चाहिए वो क्या सवाल है
Vaibhav Vijay liked this
71%
Flag icon
बेदस्तोपा3 हूँ आज तो इल्ज़ाम किसको दूँ कल मैंने ही बुना था ये मेरा ही जाल है
72%
Flag icon
वह शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गई जैसे अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
Vaibhav Vijay liked this
77%
Flag icon
उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला 1 फिर हमें हवा से रहे
78%
Flag icon
मेरी बुनियादों में कोई टेढ़ थी अपनी दीवारों को क्या इल्ज़ाम दूँ
Vaibhav Vijay liked this
79%
Flag icon
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़ुज़ूल1 गया
Vaibhav Vijay liked this
84%
Flag icon
एक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूँढता फिरा उसको वो नगर-नगर तनहा
89%
Flag icon
आगही1 से मिली है तनहाई आ मिरी जान मुझको धोखा दे