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बंबई में पाँच बरस होने को आए, रोटी एक चाँद है हालात बादल, चाँद कभी दिखाई देता है, कभी छुप जाता है।
इसका पता अभी दूसरों को नहीं है मगर वो तमाम चीज़ें जो कल तक मुझे ख़ुशी देती थीं झूठी और नुमाइशी लगने लगी हैं।
जब वो कम-उम्र ही था उसने यह जान लिया था कि अगर जीना है बड़ी चालाकी से जीना होगा आँख की आख़िरी हद तक है बिसाते-हस्ती3 और वह मामूली-सा इक मुहरा है एक इक ख़ाना बहुत सोच के चलना होगा