Tarkash (Hindi)
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Read between March 30 - April 4, 2018
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बहुत नाकामियों पर आप अपनी नाज़ करते हैं अभी देखी कहाँ हैं, आपने नाकामियाँ मेरी
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“मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो उस दुनिया की औरत है”—
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कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
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ख़ुशशक्ल1 भी है वो, ये अलग बात है, मगर हमको ज़हीन 2 लोग हमेशा अज़ीज़3 थे
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अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है
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इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
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ऐ सफ़र इतना रायगाँ1 तो न जा न हो मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे
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ये तसल्ली है कि हैं नाशाद1 सब मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
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उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला 1 फिर हमें हवा से रहे
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मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
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जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का