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Kindle Notes & Highlights
बहुत नाकामियों पर आप अपनी नाज़ करते हैं अभी देखी कहाँ हैं, आपने नाकामियाँ मेरी
“मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो उस दुनिया की औरत है”—
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है मगर जो खो गयी वो चीज़ क्या थी
ख़ुशशक्ल1 भी है वो, ये अलग बात है, मगर हमको ज़हीन 2 लोग हमेशा अज़ीज़3 थे
अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं
ऐ सफ़र इतना रायगाँ1 तो न जा न हो मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद1 सब मैं अकेला ही नहीं बरबाद सब
उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला 1 फिर हमें हवा से रहे
मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का