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मैं किस शहर को अपना शहर कहूँ? … पैदा होने का जुर्म ग्वालियर में किया लेकिन होश सँभाला लखनऊ में, पहली बार होश खोया अलीगढ़ में, फिर भोपाल में रहकर कुछ होशियार हुआ लेकिन बम्बई आकर काफ़ी दिनों तक होश ठिकाने रहे, तो आइए ऐसा करते हैं कि मैं अपनी ज़िन्दगी का छोटा सा फ़्लैश बैक बना लेता हूँ। इस तरह आपका काम यानी पढ़ना भी आसान हो जाएगा और मेरा काम भी, यानी लिखना।
इस उम्र में जब बच्चे इंजन ड्राईवर बनने का ख़्वाब देखते हैं, मैंने फ़ैसला कर लिया है कि बड़ा होकर अमीर बनूँगा …
कभी-कभी सब इत्तिफ़ाक़ लगता है। हम लोग किस बात पर घमंड करते हैं)।
कामयाबी भी जैसे अलादीन का चिराग़ है। अचानक देखता हूँ कि दुनिया ख़ूबसूरत है और लोग मेहरबान। साल-डेढ़ साल में बहुत कुछ मिल गया है और बहुत कुछ मिलने को है। हाथ लगते ही मिट्टी सोना हो रही है और मैं देख रहा हूँ—अपना पहला घर, अपनी पहली कार।
ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है
उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला 1 फिर हमें हवा से रहे
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़ुज़ूल1 गया