सुन ले उजड़ी दुकाँ ए सुलगते मकाँ टूटे ठेले तुम्हीं बस नहीं हो अकेले यहाँ और भी हैं जो ग़ारत2 हुए हैं हम इनका भी मातम करेंगे मगर पहले उनको तो रो लें कि जो लूटने आए थे और ख़ुद लुट गए क्या लुटा इसकी उनको ख़बर ही नहीं कमनज़र हैं कि सदियों की तहज़ीब पर उन बेचारों की कोई नज़र ही नहीं।

