Nilesh Injulkar

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मिरी ज़िंदगी, मिरी मंज़िलें, मुझे क़़ुर्ब1 में नहीं, दूर दे मुझे तू दिखा वही रास्ता, जो सफ़र के बाद ग़ुरूर2 दे वही जज़्बा दे जो शदीद3 हो, हो खुशी तो जैसे कि ईद हो कभी ग़म मिले तो बला का हो, मुझे वो भी एक सुरूर4 दे तू गलत न समझे तो मैं कहूँ, तिरा शुक्रिया कि दिया सुकूँ5 जो बढ़े तो बढ़के बने जुनूँ, मुझे वो ख़लिश6 भी ज़रूर दे मुझे तूने की है अता7 ज़बाँ, मुझे ग़म सुनाने का ग़म कहाँ रहे अनकही मिरी दास्ताँ, मुझे नुत्क़8 पर वो उबूर9 दे ये जो जुल्फ़ तेरी उलझ गई, वो जो थी कभी तिरी धज गई मैं तुझे सवारूँगा ज़िंदगी, मिरे हाथ में ये उमूर10 दे
Tarkash (Hindi)
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