Tarkash (Hindi)
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Read between February 18 - March 23, 2024
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जब से किसी ने कर ली है सूरज की चोरी आओ चल के सूरज ढूँढें और न मिले तो किरन किरन फिर जमा करें हम और इक सूरज नया बनाएँ —सुबह की गोरी
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जिसे छू लूँ मैं वो हो जाए सोना तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी मरीज़े-ख़्वाब1 को तो अब शफ़ा2 है मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
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ऊँची इमारतों से मकां मेरा घिर गया कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए
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कौन-सा शे’र सुनाऊँ मैं तुम्हें, सोचता हूँ नया मुब्हम1 है बहुत और पुराना मुश्किल
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ख़ुशशक्ल1 भी है वो, ये अलग बात है, मगर हमको ज़हीन 2 लोग हमेशा अज़ीज़3 थे
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सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है हर घर में बस एक ही कमरा कम है
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अपनी वजहे-बरबादी सुनिये तो मज़े की है ज़िंदगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है
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शाम की रोटी कमाने के लिए घर से निकले तो हैं कुछ लोग मगर मुड़ के क्यूँ देखते हैं घर की तरफ़
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जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
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सुन ले उजड़ी दुकाँ ए सुलगते मकाँ टूटे ठेले तुम्हीं बस नहीं हो अकेले यहाँ और भी हैं जो ग़ारत2 हुए हैं हम इनका भी मातम करेंगे मगर पहले उनको तो रो लें कि जो लूटने आए थे और ख़ुद लुट गए क्या लुटा इसकी उनको ख़बर ही नहीं कमनज़र हैं कि सदियों की तहज़ीब पर उन बेचारों की कोई नज़र ही नहीं।
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तू तो मत कह हमें बुरा दुनियाँ तूने ढाला है और ढले हैं हम
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अकसर वो कहते हैं वो बस मेरे हैं अकसर क्यूँ कहते हैं हैरत होती है
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तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे अब मिलते हैं जब भी फ़ुरसत होती है
66%
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आज की दुनिया में जीने का क़रीना1 समझो जो मिलें प्यार से उन लोगों को ज़ीना2 समझो
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कोई याद आये हमें कोई हमें याद करे और सब होता है ये क़िस्से नहीं होते हैं
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आज तारीख़1 तो दोहराती है ख़ुद को लकिन इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते हैं।
71%
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किसी की आँख से टपका था इक अमानत है मिरी हथेली पे रक्खा हुआ ये अंगारा
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फिर कोई ख़्वाब देखूँ, कोई आरज़ू करूँ अब ऐ दिले-तबाह 4 तिरा क्या ख़याल है
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हर एक किस्से का इक इख़तिताम2 होता है हज़ार लिख दे कोई फ़तह 3 ज़र्रे ज़र्रे पर मगर शिकस्त का भी इक मुक़ाम होता है
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उन चराग़ों में तेल ही कम था क्यों गिला 1 फिर हमें हवा से रहे
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अब ग़म उठाएँ किसलिए आँसू बहाएँ किसलिए ये दिल जलाएँ किसलिए यूँ जाँ गवाएँ किसलिए पेशा न हो जिसका सितम ढूँढेंगे अब ऐसा सनम होंगे कहीं तो कारगर5मैं और मिरी अवारगी
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कभी कभी मैं ये सोचता हूँ कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त1 जा रहे हैं मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं तो क्या ये मुमकिन है सारी सदियाँ क़तार अंदर क़तार2 अपनी जगह खड़ी हों ये वक़्त साकित3 हो और हम ही गुज़र रहे हों इस एक लम्हे में सारे लम्हे तमाम सदियाँ छुपी हुई हों न कोई आइंदा4 न गुज़िश्ता5 जो हो चुका है वो हो रहा है जो होनेवाला है हो रहा है मैं सोचता हूँ कि क्या ये मुमकिन है सच ये हो कि सफ़र में हम हैं गुज़रते हम हैं जिसे समझते हैं हम गुज़रता है वो थमा है
88%
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रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं
89%
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मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं एक ये दिन ज़ब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं एक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझिल रहती थीं एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी1 की बातें हैं एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं एक ये घर जिस घर में मेरा साज़ो-सामाँ1 रहता है ...more
91%
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मिरी ज़िंदगी, मिरी मंज़िलें, मुझे क़़ुर्ब1 में नहीं, दूर दे मुझे तू दिखा वही रास्ता, जो सफ़र के बाद ग़ुरूर2 दे वही जज़्बा दे जो शदीद3 हो, हो खुशी तो जैसे कि ईद हो कभी ग़म मिले तो बला का हो, मुझे वो भी एक सुरूर4 दे तू गलत न समझे तो मैं कहूँ, तिरा शुक्रिया कि दिया सुकूँ5 जो बढ़े तो बढ़के बने जुनूँ, मुझे वो ख़लिश6 भी ज़रूर दे मुझे तूने की है अता7 ज़बाँ, मुझे ग़म सुनाने का ग़म कहाँ रहे अनकही मिरी दास्ताँ, मुझे नुत्क़8 पर वो उबूर9 दे ये जो जुल्फ़ तेरी उलझ गई, वो जो थी कभी तिरी धज गई मैं तुझे सवारूँगा ज़िंदगी, मिरे हाथ में ये उमूर10 दे
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जीवन-जीवन हमने जग में खेल यही होते देखा धीरे-धीरे जीती दुनिया धीरे-धीरे हारे लोग
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नेकी इक दिन काम आती है हमको क्या समझाते हो हमने बेबस मरते देखे कैसे प्यारे-प्यारे लोग इस नगरी में क्यों मिलती है रोटी सपनों के बदले जिनकी नगरी है वो जानें हम ठहरे बँजारे लोग
99%
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धुल गई है रूह लेकिन दिल को ये एहसास है ये सूकूँ बस चन्द लमहों को ही मेरे पास है फ़ासलों की गर्द में ये सादगी खो जाएगी शहर जाकर ज़िंदगी फिर शहर की हो जाएगी