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सच ये है बेकार हमें ग़म होता है जो चाहा था दुनिया में कम होता है
तुम्हें भी याद नहीं और मैं भी भूल गया वो लम्हा कितना हसीं था मगर फ़ुज़ूल1 गया
रात सर पर है और सफ़र बाक़ी हमको चलना ज़रा सवेरे था।