श्रेय होगा मनुज का समता-विधायक ज्ञान, स्नेह-सिञ्वित न्याय पर नव विश्व का निर्माण। एक नर में अन्य का निःशंक, दृढ़ विश्वास, धर्मदीप्त मनुष्य का उज्ज्वल नया इतिहास– समर, शोषण, ह्रास की विरुदावली से हीन, पृष्ठ जिसका एक भी होगा न दग्ध, मलीन। मनुज का इतिहास, जो होगा सुधामय कोष, छलकता होगा सभी नर का जहाँ संतोष।