Ashutosh Parauha

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“पूछो किसी भाग्यवादी से, यदि विधि-अंक प्रबल है, पद पर क्यों देती न स्वयं वसुधा निज रतन उगल़ है? “उपजाता क्यों विभव प्रकृति को सींच-सींच वह जल से? क्यों न उठा लेता निज संचित कोष भाग्य के बल से?
कुरुक्षेत्र
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