Dongri Se Dubai Tak (Dongri to Dubai: Six Decades of the Mumbai Mafia) (Hindi)
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उसकी धमकियाँ इतनी ख़तरनाक थीं कि रिटायरमेण्ट के बाद दाभोलकर ने इस उम्मीद में अपने सफ़ेद बाल रँगकर काले कर लिए थे और दाढ़ी बढ़ा ली थी कि इससे मन्या उसे पहचान नहीं पाएगा।
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उसकी इसी क़ाबिलियत के चलते पठानों ने हत्या की अपनी योजना के लिए उसे चुना था। उन्होंने उस शंकालु मन्या से सम्पर्क किया था, जो अपने क्रोधोन्माद और दूसरे लोगों के प्रति अपने विलक्षण और आम अविश्वास के लिए जाना जाता था।
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दाऊद को हमेशा से एक माफ़ न करने वाला व्यक्ति माना जाता था।
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हत्याओं, हिंसक डकैतियों, और अपहरणों की वारदातों का एक पूरा सिलसिला बीत जाने के बाद तत्कालीन पुलिस कमिश्नर जूलियो रिबेरो ने 1981 में मन्या का शिकार करने के लिए एक विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया। इस दस्ते में वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर आइजैक सैम्सन; इंस्पेक्टर यशवन्त भिड़े; और सब–इंस्पेक्टर राजा ताबट, सजय पराण्डे और इशाक़ बागवान शामिल किए गए।
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क़ानून को लगातार झाँसा देने के चलते मन्या के भीतर टकराव के लिए हर समय तैयार रहने की एक प्रवृत्ति घर कर चुकी थी। डोम्बीवली के निवासी बताते हैं कि वह जब बाहर निकलता था तो हथगोलों से भरा बैग लेकर चलता था, जैसे लोग प्लास्टिक के थैलों में चीकू लेकर चलते हैं। कभी भी किसी ने उसके रास्ते में आने की हिम्मत नहीं की थी। ख़ुद को एक बन्दूक, एक गँडासे, और तेज़ाब की एक बोतल से लैस किए बग़ैर वह कभी कहीं नहीं जाता था। किसी भी दूसरे गिरोहबाज़ को ऐसा करते हुए कभी नहीं देखा गया था। वह किसी पर भरोसा नहीं करता था और अपनी गतिविधियों के बारे में अपने गुर्गों तक को पूरी तरह से सूचित नहीं करता था ताकि पकड़े जाने से बच ...more
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लेकिन आख़िरकार यह एक औरत का इश्क़ था जो उसका कमज़ोर पहलू साबित हुआ।
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लेकिन गुत्थी आज तक नहीं सुलझी है। पुलिस को मन्या के एकदम सही ठौर और वक्त का पता कैसे चला, जबकि वह अपनी गतिविधियों को लेकर ख़ब्त के स्तर पर गोपनीयता बरतता था ? कुछ लोगों का कहना है कि उस औरत ने उसे धोखा दिया। अख़बारों में छपा कि वह वहाँ से एक वेश्या को लाने वाला था जो दरअसल पुलिस द्वारा डाला गया चारा था, और वह पूरी तरह से बेख़बर जाल में फँसता चला गया। मन्या को फाँसने के लिए वेश्या पर पुलिस द्वारा दबाव डाला गया था; उसका नाम कभी उजागर नहीं किया गया पुलिस के एक वर्ग को एक गहरा शक यह भी है कि दरअसल यह दाऊद था जो कई दिनों से मन्या पर नज़र रखे हुए था और अन्त में उसी ने पुलिस को उसके वडाला जाने की ...more
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जेल लोगों को नज़रबन्द रखने और उन्हें यह चेताने की उम्मीद से बनी हैं कि वे भविष्य में अपराधों से दूर रहें। भारत की जेल, हालाँकि, एक ऐसे मक़सद को भी पूरा करती हैं, जो आपराधिक न्याय व्यवस्था के मक़सद से बिल्कुल उल्टा है। कभी–कभी निहायत मासूम लोग संगीन अपराधियों में बदल जाते हैं; जो ग़लती से जेल भेज दिए जाते हैं, वे जेल से एक विकृत मानसिकता लेकर यह सोचते हुए निकलते हैं कि ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का अब एक ही तरीक़ा बचा है कि और अपराध किए जाएँ। बम्बई के अपराध जगत के इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण भरे पड़े हैं। राजन नायर उर्फ़ बड़ा राजन का क़िस्सा इन्हीं में से एक है।
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दाऊद ने परदेसी का जिस तरह आख़िर तक पीछा किया वह इस बात की मिसाल है कि बदला लेने के मामले में वह कितना अड़ियल हो सकता है। परदेसी ने उसका मक़सद पूरा कर दिया था फिर भी वह उसके शिकार के लिए पीछे लगा रहा तो सिर्फ़ इसलिए कि उसने पुलिस के सामने अपनी ज़ुबान से दाऊद का नाम फिसल जाने दिया था। दाऊद ने छोटी से छोटी धोखेबाज़ी को न तो माफ़ किया और न ही कभी भूला।
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जो लोग तलवार के साथ जीते हैं वे तलवार से ही मारे जाते हैं।
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माफ़िया के लिए असल चुनौती इन्तकाम लेने भर की नहीं होती, बल्कि बदला लेते हुए अपने दुश्मन द्वारा की गई कार्रवाई की हूबहू नक़ल करने की भी होती
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जैसा कि दुनिया के ज़्यादातर देशों का क़ायदा है, खाने की मेज़ पर धन्धे की बातें नहीं की जातीं।
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दाऊद बम्बई पुलिस के लिए बहुत बड़ी चीज़ बन चुका था। एक तरह से वह भस्मासुर बन चुका था- बम्बई पुलिस का अपना खड़ा किया हुआ दैत्य। पुलिस ने अपनी अदूरदर्शिता के चलते एक अपराधी को बढ़ावा दिया ताकि वह उसकी मदद से दूसरे अपराधियों से निपट सके। उसका ख़याल था कि आख़िर में ढेर सारे अपराधियों से निपटने की बजाय इस एक अपराधी से निपटना आसान हो जाएगा। दाऊद चूँकि उनका गुर्गा, उनके हाथ की कठपुतली होगा, इसलिए वह उनके क़ाबू में रहेगा, ऐसा उनका सोचना था।
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‘उसे यह हवा कैसे लगी कि हम उसे गिरफ़्तार करने वाले हैं ?’ सोमन ने पूछा। ‘सर, हमारे मुसाफ़िरख़ाना पहुँचने के दस मिनट पहले उसके पास फ़ोन आया था और इतने में वह भाग गया,’ फ़ोन रिकॉर्ड्स को चैक करते हुए सब-इंस्पेक्टर विनोद भट्ट ने कहा। ‘उसे चेतावनी दी किसने ?’ सोमन को अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था, क्योंकि जिन अफ़सरों को उन्होंने चुना था वे निहायत बेदाग चरित्र के निष्ठावान अधिकारी थे। उस वक़्त कोई नहीं जानता था, लेकिन बम्बई पुलिस ने गम्भीर भूल की थी। जब वह छोटी-सी टीम दाऊद के बहुत क़रीब थी, तभी पुलिस कमिश्नर ने मन्त्रालय के एक वरिष्ठ राजनेता से इस अभियान के बारे में सहमति और निर्देश हासिल करने की ...more
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इत्तफ़ाक से, कालिया के मारे जाने की पृष्ठभूमि कमोबेश वैसी ही थी जैसी नाईक के मामले में थी। दाऊद और किसी समय उसका प्यादा रह चुके कालिया के बीच की कोई मुलाक़ात ठीक नहीं रही थी, जिससे दाऊद नाखुश था। कालिया ने उससे कहा कि वह उसे‘ छोड़कर जा रहा है। दाऊद ने ख़ामोश रहकर कालिया को दुबई से चले जाने दिया। लेकिन माना जाता था कि इस मामले में भी उसके पहुँचने की सूचना पुलिस को चुपचाप दे दी गई थी ।
Dharmendra Chouhan
Ek thi begum lead character
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कालिया के मारे जाने में एक पैगाम छुपा हुआ था : जिसने भी दाऊद से बगावत की उसका मरना तय है।
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दानिशमन्द लोग अक्सर इस बात को दोहराते रहे हैं कि जब किसी इंसान के पास खोने को कुछ नहीं रह जाता तो उसका इरादा एक ख़ब्त में बदल जाता है जो सिर्फ़ कामयाबी की तरफ़ ही ले जाता है। जब आप गिरकर सबसे नीचे पहुँच जाते हैं तो ऊपर उठने के अलावा और कोई रास्ता आपके पास नहीं होता। विजय
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पुलिस ने आख़िर अपना काम पूरा किया और उसे ख़त्म कर दिया। पुलिस इस तरह के मामलों में इंसाफ़ के लिए आमतौर पर अदालतों पर निर्भर नहीं करती। फिर उटेकर का मामला वैसे भी पुलिस का ज़ाती मामला था। वह न सिर्फ़ जेल का दरवाज़ा तोड़कर अन्दर घुसा था, जो कि पुलिस का आख़िरी दुर्ग है, बल्कि उसने वहाँ ड्यूटी पर तैनात एक अफ़सर को भी मारा था।
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मसलन, बम्बई माफ़िया की हुकूमत का उसूल था कि दो गुटों के बीच दुश्मनी में चाहे कितनी ही कड़वाहट क्यों न हो, परिवार के लोगों का ख़ून कभी नहीं बहाया जाना चाहिए। परिवार के जो सदस्य माफिया गिरोह के सदस्य होते थे, उन्हें अलबत्ता यह अभयदान प्राप्त नहीं था, लेकिन माफिया उन लोगों को कभी निशाना नहीं बनाता था जो संगठित अपराध के स्याह कारोबार में मुब्तिला नहीं होते थे।
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यह मुठभेड़ साढ़े चार घण्टे तक चलती रही थी जिसमें 2,500 राउण्ड से ज़्यादा गोलियाँ चली थीं। यह मुठभेड़ नहीं थी; यह एक युद्ध था, ऐसा युद्ध जिसमें हर गोली मारने के इरादे से चलाई गई थी। यह अण्डरवर्ल्ड के लिए एक चेतावनी थी, एक खुली धमकी, और मौत का एक पैगाम जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया था कि आगे से किसी गिरोहबाज़ द्वारा किसी भी पुलिसवाले का ख़ून न बहाया जाए।
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उसे लगता था कि जब तक राजन कारोबार को सँभाले हुए है, वह ख़ुद थोड़ी राहत महसूस कर सकता है और भारत की छोटी–मोटी सिनेतारिकाओं के साथ हमबिस्तर होते हुए ज़िन्दगी के मज़े ले सकता है। कुछ तो उसके साथ मजबूरी में सोती थीं, लेकिन ज़्यादातर अपनी इच्छा से ऐसा करती थीं, क्योंकि इससे वे अपने निर्माताओं और वितरकों पर रौब क़ायम कर पाती थीं। साथ
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उस ज़माने के लगभग सारे प्रसिद्ध सितारे उसकी पार्टियों में शामिल होते थे और उसके साथ शराब पीते थे, और बम्बई लौटने पर अपने बीच के लोगों से इस आनन्द का ज़िक्र करना न भूलते।
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आमतौर पर, अण्डरवर्ल्ड पुलिस को निशाना नहीं बनाता क्योंकि इससे पुलिस बल में दुश्मनी का भाव पैदा हो सकता है, और वह बदले की भावना से पूरे गिरोह के सफ़ाए पर उतर सकती है।
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बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद हुए साम्प्रदायिक दंगों ने देश भर में 2,००० से ज़्यादा लोगों की जानें लीं और मुल्क पर साम्प्रदायिक नफ़रत का गहरा दाग़ हमेशा के लिए अंकित कर दिया।
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क़ाबिल और करिश्माई नेताओं का अभाव मुस्लिम नौजवानों को हमेशा ग़लत लोगों को अपना आदर्श बनाने की तरफ़ धकेलता रहा है।
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फिर भी, ट्रैफ़िक पुलिस के डिप्टी कमिश्नर राकेश मारिया, जिनके पास ज़ोन IV का अतिरिक्त प्रभार भी था, को जाँच का काम सौंपा गया और उन्होंने साक्ष्य एकत्रित कर करीब 200 लोगों को गिरफ़्तार किया।
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जब भारत सरकार ने दाऊद को दुबई से देशनिकाला देने का हल्ला मचाया और इस फ़रार डॉन पर धावा बोलने के लिए यूएई पर दबाव डालना शरू किया, तो हिन्दुस्तान का यह सबसे ताक़तवर गिरोहबाज़ कुछ देर के लिए वाक़ई चिन्तित हो उठा। क्योंकि दबाव इतना ज़बरदस्त था कि यूएई के ताक़तवर शेख उससे हिल गए थे।
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लेकिन भारत अपने इस रुतबे को भुनाने में नाकामयाब रहा। 1993 के धमाकों के बाद भारत के प्रति पूरी दुनिया में सहानुभूति की एक लहर थी। अगर भारत चाहता, तो वह इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर सकता था और दाऊद को मुल्क में वापस ला सकता था। पर यह अवसर खो दिया गया।
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जब बम्बई पर हमला करने और ,धमाके करने का प्रस्ताव आया तो दाऊद ने चालाकी करते हुए आईएसआई से टाइगर मेमन को हीरो बनाने का आग्रह किया। मेमन ने चारा निगला और शहर से बाहर हो गया, और दाऊद एक बूँद खून बहाए बग़ैर अपने प्रतिद्वन्द्वी को पराजित करने में कामयाब हुआ। यही वजह है कि भारत की एजेन्सियाँ दाऊद को इस पूरे अभियान का दोषी नहीं ठहरा पाई और उन्हें मुख्य आरोपी और मुख्य गुनहगार के रूप में टाइगर मेमन का नाम दर्ज करना पड़ा। आवाम
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उस वक़्त हथियार न उठाने के लिए उसका मज़ाक़ उड़ाया गया था, झिड़का गया था, और अब इस वारदात में कथित रूप से शामिल होने के लिए वह पूरी दुनिया की नज़रों में एक गद्दार था।
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लेकिन महाराष्ट्र के कुछ नेताओं की आशंकाओं ने इस काम में अड़ंगा डाल दिया। उन्हें इस बात की चिन्ता थी कि अगर दाऊद लौटा और अदालत द्वारा बरी कर दिया गया, तो राज्य और केन्द्र में बैठे बहुत से लोगों की गैरक़ानूनी सौदेबाज़ियों की कलई खुल जाएगी। यह विडम्बना ही थी कि मुकदमे की प्रक्रिया में दाऊद बहुत सारे राजनेताओं को अपने जल्लाद की शक्ल में बदलता दिख रहा था। अगर उसे वापस ले आया जाता, तो दुबई और लन्दन में उसके साथ की गई तमाम गैरक़ानूनी मुलाक़ातों का भण्डाफोड़ हो जाता। इन राजनेताओं को दाऊद द्वारा दी गई इमदाद का एक–एक दृष्टान्त सामने आ जाता।
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बिना शर्त समर्पण न करने के अपने फ़ैसले को उसने उस वक़्त उचित ही पाया जब उसने याकूब मेमन की दशा देखी, जो धमाकों के कई सारे आरोपियों के ख़िलाफ़ टनों सबूत लेकर भारत लौटा था। लेकिन उस पर किसी सड़कछाप ठग की तरह मुकदमा चलाया गया था और मौत की सज़ा सुनाई गई थी। उस आदमी के प्रति कोई दया नहीं दिखाई गई जिसने स्वेच्छा से सूचनाएँ मुहैया कराने की तत्परता दिखाई थी और आत्मसर्पण के लिए राज़ी हुआ था।
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इस तरह भारत सरकार ने अण्डरवर्ल्ड के एक बहुत बड़े मगरमच्छ को अपने जाल से निकल जाने दिया। जानकार लोगों का यक़ीन है कि उसे वापस लाया जा सकता था और फिर सरकार उसके साथ किए गए सौदे से तुरन्त मुकर सकती थी। अन्त में नतीजा यही निकला कि दाऊद एक आज़ाद इंसान बना रहा और बाद में, कराची के अपने सुरक्षित महलों में बैठकर, हिन्दुस्तान पर कहर ढाता रहा।
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लेकिन खोटे सिक्कों, औरतों, और खोए हुए मोज़ों के बारे में एक कहावत है। वे आपके अनचाहे दोबारा आपके पास लौट आते हैं।
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विचित्र–सी बात थी कि उसने ख़ुद कई बार हत्याओं की योजनाएँ बनाई थीं लेकिन तब कभी भी ऐसा महसूस नहीं किया था। लेकिन विडम्बना देखिए कि जब उतने ही ख़ौफ़नाक और निर्दय तरीक़े से कोई उसे मारने की योजना बना रहा था, तो यह बात राजन के गले नहीं उतर रही थी।
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भले ही दाऊद, राजन और RAW एजेण्टों के मंसूबे अलग–अलग थे, लेकिन एक सच्चाई थी जिस पर तीनों को सहमत माना जा सकता था : इंसान का सबसे ख़तरनाक दुश्मन वही होता है जो किसी वक़्त में उसका सबसे जिगरी रहा होता है।
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कराची को मुम्बई की बहन माना जाता है, क्योंकि दोनों सूरत में और सीरत में, देखने और महसूस करने में एक जैसे हैं, और मुम्बई की तरह ही वह भी एक बन्दरगाह है; यहाँ तक कि उसके कुछ इलाक़े ऐसे भी हैं जहाँ की गन्ध मुम्बई से मिलती-जुलती है।
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दरअसल वह अकेला भाई या डी गिरोह का अकेला सदस्य था जो राजन के दुबई से पलायन के बाद पिछले कुछ सालों से उससे सम्पर्क बनाए हुए था।
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शर्मा से एक ही चूक हुई। उन्होंने गुलशन कुमार की हिफ़ाज़त पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसमें शर्मा का कोई कसूर नहीं था, क्योंकि पुलिस मशीनरी के भीतर किसी के भी मन में यह ख़याल नहीं था कि गुलशन कुमार को शिकार बनाया जा सकता है।
Dharmendra Chouhan
Wrong. As per rakesh maria's book let me say it now...He had been providsd security but after sometime they didn't paid much attention and one day his wicket was gone outside shiv mandir
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मुम्बई के पुलिस चीफ़ का काम देश के तमाम पुलिस कमिश्नरों में सबसे ज़्यादा नाजुक और जोखिम भरा था। शहर के पुलिस चीफ़ को अपना पद बनाए रखने के लिए एक साथ कई बॉसों को खुश रखना होता था और अनेक शक्ति–केन्द्रों की जीहुज़ूरी करनी पड़ती थी। टिके रहने के इस रहस्य को जो समझता था वह ज़्यादा दिनों तक वहाँ पर अपने को बनाए रख पाता था, और जो तमाम लोगों के फूले हुए अहं को सन्तुष्ट नहीं कर पाता था उसे बहुत बर्बाद तरीक़े से निकल लेना होता था।
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जैसा कि बाद में ज़ाहिर हुआ, जावेद फावड़ा क्राइम ब्रांच के लिए कई मायनों में एक भस्मासुर साबित हुआ।
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अबू सलेम ने दुबई में जानेमाने बॉलीवुड संगीतकार नदीम–श्रवण के संगीत का एक भव्य जलसा आयोजित किया था, जिसे देखने शाहरुख ख़ान, सलमान ख़ान, जैकी श्रॉफ़, और आदित्य पंचोली जैसे आला फ़िल्मी सितारे शरीक हुए थे।
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एक ऐसी व्यवस्था के भीतर जहाँ मुख्यमन्त्री और गृह मन्त्री एक–दूसरे से नज़रें न मिलाते हों, उसमें पुलिस के आला अफ़सरों के सिर पर हमेशा तलवार लटकती रहती है। इसकी सबसे ताज़ा बानगी डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस राकेश मारिया के रूप में पेश की गई थी। क्राइम ब्रांच में मारिया के कार्यकाल की इन्तहाई कामयाबी का दौर वह था जब उन्होंने 1993 के बम्बई धमाकों की गुत्थी सुलझाई थी। लेकिन जब उन्हें ख़ुफ़िया जानकारी मिली कि शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के परित्यक्त बेटे जयदेव के कलीना स्थित निजी चिड़ियाघर में कुछ लुप्तप्राय प्रजाति के प्राणी मौजूद हैं, और इस पर मारिया के आदमी जयदेव के घर गए, तो इस घटना के कुछ ही दिनों ...more
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संयोग से, इंडियन पीनल कोड में फ़ोन टेपिंग को लेकर बहुत ज़्यादा प्रावधान मौजूद नहीं थे, अलावा टेलिग्राफ़ एक्ट ऑफ़ 1885 नामक एक सदी पुराने क़ानून के, जिसे बाद में झाड़-पोंछकर इंडियन टेलिग्राफ़ एक्ट ऑफ़ 1975 की नई शक्ल दे दी गई थी। प्रक्रिया यह थी : अगर किसी ख़ास नम्बर को टेप किया जाना है, तो सम्बन्धित अफ़सर इसके लिए अपने वरिष्ठ अधिकारी से अनुरोध करेगा, जो अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर या संयुक्त पुलिस कमिश्नर में से कोई भी हो सकता था। जो इसके बाद पुलिस के मुखिया की रज़ामन्दी हासिल करेगा। फिर पुलिस कमिश्नर को इसकी मंजूरी गृह विभाग से प्राप्त करनी होगी। यह पूरी प्रक्रिया इतनी लम्बी थी कि इसमें सारा ...more
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एक अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर बताता है कि ‘पहला विश्वयुद्ध एक भटके हुए टेलिग्राफ़ की वजह से हुआ था। जब ऑक डयूक फ़र्डिनैन्ड की ऑस्ट्रिया में हत्या कर दी गई, तो मोर्स कोड का इस्तेमाल करते हुए एक टेलिग्राफ़ ने तमाम सम्बन्धित लोगों को चौकन्ना कर दिया था। नतीजतन, जर्मनी फुर्ती से हरकत में आया और उसने ऑस्ट्रिया पर क़ब्ज़ा कर लिया। ऐसे थे वे खतरे जिन्होंने सल्तनतों को लड़ाई के दौरान टेलिग्राफ़ को नियन्त्रित करने की ज़रूरत का एहसास कराया था। सावन्त
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हर तरह के टेक्नोसर्विलेंस में एकमात्र गोपनीयता आपके दिमाग में ही होती है। ऑटोमेटेड कण्टेण्ट एनालिसिस का सॉफ़्टवेयर कुछ चुने हुए शब्द लेता है और एक रेण्डम सर्च के बाद उस बातचीत को अलग कर देता है।
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इण्टेलिजेंस ब्यूरो उसे साफ़ तौर पर ज़रूरी धन और साधन मुहैया कराता रहा था, तब भी राजन अपने दुश्मनों की गिद्ध निगाहों से बच नहीं सका था।
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कोई वजह नहीं थी कि राजन लापरवाही बरतता, ख़ासतौर पर तब जबकि वह खुद ऐसी दीर्घकालीन मुहिमों का हिस्सा रह चुका था। जहाँ हत्या जैसी बड़ी चीज़ दाँव पर लगी हो वहाँ आपको अपने शिकार का महीनों नहीं. सालों तक इन्तज़ार करना होता है। भूतपूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स द गॉल और मरहूम लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफ़ी ने अपनी हत्या की तीस से ऊपर कोशिशों को झेला था।
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‘जानकार सूत्रों के मुताबिक़ दाऊद पाकिस्तान का पहले नम्बर का जासूस है। मुम्बई में बैठे उसके आदमी उसे वह हर सूचना हासिल करने में मदद करते हैं जिसकी पाकिस्तान को ज़रूरत होती है।
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रेड कॉर्नर नोटिस इण्टरपोल द्वारा जारी की जाने वाली चेतावनी है जो तमाम देशों को भेजी जाती हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे तलाशे जा रहे व्यक्ति को गिरफ़्तार कर उसे सम्बन्धित देश के लिए सौंप दें।