मैं १६ दिसंबर हूँमैं १६ दिसंबर हूँ,अभिशप्त, कलंकित |काश ध...


मैं १६ दिसंबर हूँ










मैं १६ दिसंबर हूँ,अभिशप्त, कलंकित |काश धरा गति बढ़ा ले,सूरज का चक्कर एक कम दिन में लगा ले,मैं मिट जाना चाहता हूँ|मर्यादा के शरीर से,जब मानवता नोच ली गयी थी,उन घावों को फिर से हरा नहीं करना चाहता हूँ, मैं मिट जाना चाहता हूँ |
आज हँसी तो  होगी,ख़ुशी न होगी,मन में कलेश रहेगा,शांति न होगी,जब सूरज बुझेगा,बदबू सी उड़ेगी,आज रात विधवा सी आएगी, रोते तारे, मरासु चाँद,अट्ठास करती हवा,हड्डियों तक भेदती वेदना,सब तड़पेंगे, सब कापेंगे,मैं ये नहीं चाहता हूँ, मैं मिट जाना चाहता हूँ |
      गौरव शर्मा  
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Published on December 15, 2015 20:09
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