मैं १६ दिसंबर हूँ
मैं १६ दिसंबर हूँ,अभिशप्त, कलंकित |काश धरा गति बढ़ा ले,सूरज का चक्कर एक कम दिन में लगा ले,मैं मिट जाना चाहता हूँ|मर्यादा के शरीर से,जब मानवता नोच ली गयी थी,उन घावों को फिर से हरा नहीं करना चाहता हूँ, मैं मिट जाना चाहता हूँ |
आज हँसी तो होगी,ख़ुशी न होगी,मन में कलेश रहेगा,शांति न होगी,जब सूरज बुझेगा,बदबू सी उड़ेगी,आज रात विधवा सी आएगी,
रोते तारे, मरासु चाँद,अट्ठास करती हवा,हड्डियों तक भेदती वेदना,सब तड़पेंगे, सब कापेंगे,मैं ये नहीं चाहता हूँ, मैं मिट जाना चाहता हूँ |
गौरव शर्मा