Photo by Monica Denevan,
Sourceकभी कभी जब घर बाहर सब बेतरतीब सा बिखरा-बिखरा हो, दिल-ओ-दिमाग भी कुछ विचलित सा हो, मन किसी काम में न लग पाए, और तब एक ऐसी कविता आप के सामने आ जाए तो शुकरगुज़ारी का एक बहुत पयारा एहसास होता है। आज कुछ ऐसा ही दिन है।
बाकी बात सब बाद में, पहले कविता का आनंद लें....
जीवन-यानरचनाकार:
सुमितरानंदन पंत
(जनम - मई )
अहे विशव! ऐ विशव-वयथित-मन!
किधर बह रहा है यह जीवन?
यह लघु-पोत, पात, तृण, रज-कण,
असथिर-भीरु-वितान,
किधर?--किस ओर?--अछोर,--अजान,
डोलता है यह दुरबल-यान?
मूक-बुदब...
Published on May 19, 2015 22:36