रास्ते, मंज़िले, मंज़िलों का कारवां
बदलता है और बदलता ही रहेगा’
ये तो वक़्त कि वो सुनहरी सी साज़िश हैं
जो चलती थी और चलती ही रहेगी
इस्पे इतना गुरूर नहीं
गुरूर से इन्सां ने आखिर पाया भी क्या है
इंसान खुद वो काठ पुतली है
जो बदलती थी और बदलती ही रहेगी।
Published on February 23, 2015 01:04