महज़ इस बात पे लड़े थे हम
की करवट बदल कर पहले थामे कौन
पलकों पर सूखी हुई नमी को न मैंने दिखाया
ना वो पलट कर कह सका के छोडो जाने दो
महज़ इस बात पे लड़े थे हम
की करवट बदल कर पहले थामे कौन..
चुप चाप रसोई में जा कर सुबह की चाय बना दी
बिना कुछ बोले तौलिया वहीँ रखा रोज़ की तरह
इससे पहले वो कुछ बोले मैंने मौक़ा ना दिया
बेतरतीब पड़ी फाइलों को समेट, कमीज का टूटा बटन टांक दिया
फिर भी उदास चेहरे पर ये उम्मीद थी
तिरछी आँखों से इंतज़ार था उसके हाथों का कमर पर
के मनाने के लिए थोड़ी जद्दोजहद होगी तो मान जाउंगी
अपनी बात ऊपर रख कर सब कुछ मनवाउंगी
चिट भी मेरी और पट भी मेरी का रिवाज़ तो उस दिन से था
सालों पहले चाय की प्याली सरकाते हुए
और सबकी नज़रे बचाते हुए धीमे से पुछा था मुझसे
"थोडा गुस्से वाला हूँ.. चलेगा?"
मैंने सर झुका कर भर दी थी हामी और कहा
" अगर थोड़ा नखरा मेरा भी हो तो चलेगा?"
और अब महज़ इस बात पे लड़ बैठे हम,
करवट बदल कर पहले थामेगा कौन..
..करवट बदल कर पहले हमें थमेगा कौन..
Published on February 07, 2015 23:08