कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं………..
शब्द नए चुनकर गीत वही हर बार लिखूँ मैंउन दो आँखों में अपना सारा संसार लिखूँ मैंविरह की वेदना लिखूँ या मिलन की झंकार लिखूँ मैंकैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं……………
उसकी देह का श्रृंगार लिखूँ या अपनी हथेली का अंगार लिखूँ मैंसाँसों का थमना लिखूँ या धड़कन की रफ़्तार लिखूँ मैंजिस्मों का मिलना लिखूँ या रूहों की पुकार लिखूँ मैंकैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं…………….
उसके अधरों का चुंबन लिखूँ या अपने होठों का कंपन लिखूँ मैंजुदाई का आलम लिखूँ या मदहोशी में तन मन लिखूँ मैंबेताबी, बेचैनी, बेकरारी, बेखुदी, बेहोशी, ख़ामोशी……......कैसे चंद लफ़्ज़ों में इस दिल की सारी तड़पन लिखूँ मैं
इज़हार लिखूँ, इकरार लिखूँ, एतबार लिखूँ, इनकार लिखूँ मैंकुछ नए अर्थों में पीर पुरानी हर बार लिखूँ मैं........इस दिल का उस दिल पर, उस दिल का किस दिल परकैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा अधिकार लिखूँ मैं....................
होठों की ख़ामोशी लिखूँ या अंतर की आवाज़ लिखूँ मैं…अंजाम लिखूँ इश्क का या मुहब्बत का आगाज़ लिखूँ मैंगीत लिखूँ मिलन के या जुदाई के अल्फाज़ लिखूँ मैं...बिखरे हुए सुरों से कैसे कोई नया साज़ लिखूँ मैं........
कजरे की धार लिखूँ या फूलों वाला हार लिखूँ मैंलबों की शोखी लिखूँ या आँखों का इकरार लिखूँ मैंइस रीते तन-मन से, अधूरे, अकेले खाली पन सेकैसे नवयौवन-मधुबन का सारा श्रृंगार लिखूँ मैं
कैसे चंद लफ़्ज़ों में सारा प्यार लिखूँ मैं………..
दिनेश गुप्ता ‘दिन’ [https://www.facebook.com/dineshguptadin]
Published on July 03, 2012 12:49
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