एक पल तेरे काँधे से सर टिकाया था अभी,
एक पल जिए थे हम सुकून-ए-कहकशाँ बन के,
एक पर तेरी यादों से की अठखेलियाँ,
एक पल मरे हम बाकायदा मर के,
ये फालसा भी क्या फासला हुआ,
एक पल रुक गया खिजाँ बन के,
गर्दिश में किरकिरी सी भटकी हूँ मैं
एक पल थम गयी मैं तेरे अश्कों में भरके,
कल सुबह फिर बहम* होंगे हम दोनों,
एक पल बीत गया फिर यही उम्मीद करके..
..एक पल बीत गया फिर यही उम्मीद करके..
*बहम = इकठ्ठा
Published on September 10, 2014 09:59