कविता की मुक्ति मेरे मरने की खबर जब मिल...
कविता की मुक्ति
मेरे मरने की खबर
जब मिले तुमको ,
एक कमरे में कुछ देर को,
समेट लेना खुदको |
मूँद कर आखें अपनी ,
दो आंसू गिरा देना ,
दुःख हुआ है तुमको ,
बस इतना बता देना |
हौले से एक बार
मेरा नाम बुदबुदा देना,
झूठी ही सही,
हलकी सी श्रदांजलि दे देना |
फिर मनमें दोहराना ,
मेरी वही कविता ,
जो तुम्हें सबसे
अच्छी लगती है |
जानता हूँ तुमने ,
बहुत बार पड़ी है ,
पर आखिरी बार ,
कुछ इस तरह पढ़ना ,
जैसे पिंड-दान के समय ,
पुरखों को याद करते हैं |
हर शब्द को महसूस करना ,
हर पंक्ति का तर्पण कर देना |
वो शब्द जानते हैं ,
तुम्हारे लिए रचे गए थे ,
निश्छल थे , निष्पाप थे ,
पर मेरे भाग्य से जुड़े हुए थे|
वो भी तो छले गए थे |
कुछ इस तरह पढ़ना,
हर शब्द को मोक्ष मिल जाये ,
कवि को मिले न मिले ,
कविता को मुक्ति मिल जाये |
कहीं लिखी हो तो ,
फाड़ लेना वो पन्ना ,
और जला डालना ,
राख़ को पलाश के पेड़
के नीचे डाल आना |
फिर खिड़की पर आ जाना ,
एक स्याह छोटा सा ,
बादल उड़ता दिखेगा ,
नज़रें मिलते ही ,
वो मुस्कुरा देगा ,
मेरी रूह का तुमको ,
वो आखिरी सलाम होगा |
जैसे ही वो गुजरेगा ,
एक सन्नाटा पसरेगा ,
फुहारें शुरू हो जाएँगी ,
मेरी बातें , हवा के
झोंकों के संग ,
तुम्हारे गालों से टकराएंगी |
तुम्हारी लटें , उन बातों को ,
लपेटने को लहराती होंगी ,
मेरा कुछ कहना ,
फिर माफ़ी माँगना ,
देखना तुम मुस्कुरा दोगी |
यूँ ही दिन गुज़र जायेगा ,
वक़्त एक नया सवेरा लाएगा ,
सब कुछ वैसा ही होगा ,
पर पलाश के फूल ,
कुछ और सुर्ख होंगे ,
मेरी कविता में भावनाएं ,
ही इतनी थीं कि,
वो कहीं तो रंग दिखाएंगी हीं|
मेरे मरने की खबर
जब मिले तुमको ,
एक कमरे में कुछ देर को,
समेट लेना खुदको |
मूँद कर आखें अपनी ,
दो आंसू गिरा देना ,
दुःख हुआ है तुमको ,
बस इतना बता देना |
हौले से एक बार
मेरा नाम बुदबुदा देना,
झूठी ही सही,
हलकी सी श्रदांजलि दे देना |
फिर मनमें दोहराना ,
मेरी वही कविता ,
जो तुम्हें सबसे
अच्छी लगती है |
जानता हूँ तुमने ,
बहुत बार पड़ी है ,
पर आखिरी बार ,
कुछ इस तरह पढ़ना ,
जैसे पिंड-दान के समय ,
पुरखों को याद करते हैं |
हर शब्द को महसूस करना ,
हर पंक्ति का तर्पण कर देना |
वो शब्द जानते हैं ,
तुम्हारे लिए रचे गए थे ,
निश्छल थे , निष्पाप थे ,
पर मेरे भाग्य से जुड़े हुए थे|
वो भी तो छले गए थे |
कुछ इस तरह पढ़ना,
हर शब्द को मोक्ष मिल जाये ,
कवि को मिले न मिले ,
कविता को मुक्ति मिल जाये |
कहीं लिखी हो तो ,
फाड़ लेना वो पन्ना ,
और जला डालना ,
राख़ को पलाश के पेड़
के नीचे डाल आना |
फिर खिड़की पर आ जाना ,
एक स्याह छोटा सा ,
बादल उड़ता दिखेगा ,
नज़रें मिलते ही ,
वो मुस्कुरा देगा ,
मेरी रूह का तुमको ,
वो आखिरी सलाम होगा |
जैसे ही वो गुजरेगा ,
एक सन्नाटा पसरेगा ,
फुहारें शुरू हो जाएँगी ,
मेरी बातें , हवा के
झोंकों के संग ,
तुम्हारे गालों से टकराएंगी |
तुम्हारी लटें , उन बातों को ,
लपेटने को लहराती होंगी ,
मेरा कुछ कहना ,
फिर माफ़ी माँगना ,
देखना तुम मुस्कुरा दोगी |
यूँ ही दिन गुज़र जायेगा ,
वक़्त एक नया सवेरा लाएगा ,
सब कुछ वैसा ही होगा ,
पर पलाश के फूल ,
कुछ और सुर्ख होंगे ,
मेरी कविता में भावनाएं ,
ही इतनी थीं कि,
वो कहीं तो रंग दिखाएंगी हीं|
Published on July 23, 2014 20:49
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