प्यार का रंग ....सुबह से शाम तक,सूरज और मैंने पुरुक्षार्थ...

प्यार का रंग ....
सुबह से शाम तक,
सूरज और मैंने पुरुक्षार्थ किया,
शाम ने सुरमा लगाया,
तो पक्षी घर को लौटे,
मैं भी लौटा |

श्रम-स्वेद की गंध से,
गर्वित तन था,
जेब में उस पसीने से,
अर्जित धन था....
 उत्साहित पगों से,
मैं घर की और बढ़ रहा था,
पिया मिलान के,
सुन्दर सपने ,
बुन रहा था |

उसके हाथ पर जब ये
रूपये रखूंगा,
उसकी आँखे ख़ुशी से
चमक उठेंगी |
वो गर्व से मुझे निहारेगी ,
पंजों पर उचक कर,
मेरा माथा चूम लेगी |

मैं उसे आलिंगन में,
जकड़ लूँगा,
वो मेरी बाहों में और सिकुड़ेगी |
उसके लिए नुक्कड़ से,
एक गज़रा ले लूँगा,
मोगरे से हमारे प्यार की,
खुशबू और बढ़ेगी |

घर पंहुचा, द्वार खटखटाया,
उसने खोला |
कुंवारी सुबह,
ज्यों सूरज को निहारती है,
उसने मुझे कुछ ऐसे ही देखा |

उसे सजा धजा देख,
मैं उत्तेजित हो गया,
और उसे बाहों में भर लिया |

वो कसमसाई , अपने चेहरे को,
और कुरूप किया
और झटक कर,
अपने को मुझसे छुड़ा लिया |

'कितनी बदबू आ रही है तुमसे...पहले नहा कर आओ '
मैं अवाक रह गया,
अचंभित मूक आगे बढ़ा ,
घुसलख़ाने में खुद को,
बंद कर फफक कर रो पड़ा |
आंसुओं ने प्यार के,
कच्चे रंग को धो दिया |

                 ---गौरव शर्मा

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Published on June 04, 2014 20:32
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