उस दर्द की ज़ुबां थे वो आंसू,
चीख कर निकले थे तेरे आखरी वार पर..
बस एक तू ना होता शामिल मेरे कातिलों की फेहरिस्त में,
जान ही कहाँ बची के उठ कर लड़ लेते हम,
ये किस मोड़ पर ला के तूने सुर्ख रंग बिखेरा,
टूटे तो ऐसे टूटे जैसे बस टूट ही गए हम..
थी वही ग़ज़ल तेरी आँखों में बिछड़ते वक्त,
कई शाम, छुप कर जिसे लिखते थे हम..
टूटे तो ऐसे टूटे के बस टूट गए हम..
Published on May 30, 2014 10:45