तुम और मैं  आक्रोश कि अंगीठी पर,मिट्टी की हान्ड...

तुम और मैं 
 
आक्रोश कि अंगीठी पर,
मिट्टी की हान्डी में,
मेरी तुम्हारी
पौने दो मुलकातों की
यादें अब तक पक रही हैं
तुम्हरी झूम्ती लम्बी चोटी
अस्पष्ट भाव लिये तुम्हारी
घूरती आँखें
वो तिरछी मुस्कुराहट
और  व्यन्ग वाली बातें
अब बरसों के बाद
भुने हुये अतीत की खुशबू
आत्मीयता भरे वर्तमान में
 बिखरी है
मैं कितना भी झुठ्ला लूँ
मेरी जिन्दगी तुम्हारे खयालों से ही
निखरी है....
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on May 20, 2014 02:16
No comments have been added yet.