"तुम बिल्कुल वैसी हो"
मुस्काती रात के सपनों की सौगात जैसी हो,
जैसी चाहता था मैं, हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो|
तुम्हारी आँखों में समुंद्र का विस्तार देखा है,
अपने जीवन का हर सपना साकार देखा है|
तुम मुस्काती हो जब, तो वर्षा से फूल झड़ते हैं,
मेरे जीवन में खुशियों का त्यौहार होता है|
अकेली शांझ का हर क्षण मनो कांटे जैसा है,
तुम्हारा साथ होना जैसे पुरस्कार होता है|
सशंकित भयभीत रात नहीं, उजले प्रभात जैसी हो,
जैसी चाहता था मैं, हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो|
कोमल भावनाएं शापित हो पाषाण बन गईं,
तुम ऐसी आईं जैसे अहिल्या का उद्धार होता है|
मलिन इतिहास का कई बार परिहास बन गया,
तुम्हारे होने से अब और ही व्यवहार होता है|
आंसू नहीं रुकते थे करुणामयी की कविता के,
तुम प्रेम इतना लाईं, हर शब्द में श्रृंगार होता है|
मेरे श्रद्धा और विश्वास के प्रसाद जैसी हो,
जैसी चाहता था मैं, हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो|
-गौरव शर्मा
Published on May 09, 2014 21:09