समय के अधरों से साँझ मदिरा सी बूँद बूँद टपकती रही ... मैं सिंचता रहा ..... चाँद तुम्हारी यादें चांदनी मे भिगो भिगो कर लुटाता रहा ...मैं बीनता रहा ..... उंगली भर मोमबत्ती ,मिटटी की मुंडेर पर ... यथार्थ की हवाओं से लड़ती रही ... मैं बचाता रहा ..... कानो के बक्सों में बंद तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट आती रही ... .मैं सुनता रहा ..... तुम्हारी खुशबू पी
Published on April 29, 2014 07:41