तू आदत है वो..

तो क्या हुआ जो हर रात तेरे बिस्तर पर बिछी हूँ मैं
मैंने भी हर रात तुझे चादर सा ओढ़ा है
तेरी अँगड़ाई, तेरी खुशबू, यूँ ही रह जाती हैं
हर सुबह मेरी सिलवटों में जिन्हें तूने छोड़ा है
बड़ा खाली सा रह गया है ये वक्त,
जब 'खुद को' तुझे परोसा करते थे,
हाँ, हुई होगी तुझे कभी मुहोब्बत,
पर तूने मुझे एक 'आदत' बनके तोड़ा है।

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Published on April 26, 2014 10:15
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