जनवरी का महीना चलरहा था औरठंड अपने चरमपर थी। ऐसेमें एक जर्जरझोपड़ा दम साधेखड़ा था औरउसके अंदर मंगलअपने घुटनों परसर रखे जलतेहुए लालटेन कोअनवरत देख रहाथा। जैसे जैसेउस लालटेन काकिरासन कम होरहा था वैसे-वैसे मंगलके ललाट पररेखाएं ज़्यादा हो रहीथीं।
मंगल की बीवीकंबल, चादर औरन जाने किन-किन चीज़ोंके अवशेषों सेअपने छोटे बेटेको बार-बारढकने की नाकामकोशिश कर रहीथी। मंगल काबारह वर्षीय बेटाअपना सबक यादकर रहा था।अचानक उसके बेटेने उससे पूछा" बाबूजी, ये आज़ादीक्या होती है?"
इस अप्रत्याशित सवालसे मंगल चौंकगया। "बाबूजी, ये आज़ादीक्या होती है?" बेटे ने दोहराया।मंगल को कोईजवाब नहीं सूझरहा था। "बताओना, ये आज़ादीक्या होती है?" बेटे ने फ़िरसवाल दागा। "चुपचापपढ़ता क्यो नहीं?" कोई चारा नादेख मंगल नेडांट दिया।
बेटा किताब की ओरदेखकर जोर-जोरसे पढ़ने लगा, "भारत आज़ाद और संपन्नदेश है। यहांके लोग खुशहालहैं...." मंगल नेदेखा किरासन लगभगख़त्म हो गईहै। उसने आंखेंबंद कर ली।
Published on June 29, 2013 11:23