आधी किलो मुहोब्बत
"मुहोब्बत ले लो, मुहोब्बत.. ताज़ी-ताज़ी मुहोब्बत.."
ऐ लडकी? कैसी दी ये मुहोब्बत?
ले लो साब, ताजी है, बीवी को देना, बहन को देना, बेटी को देना, सच्ची है..
हुंह, नही-नही, ये तो उसके लिए है.. ला! ज़रा आधा किलो देदे..
बाबूजी मुस्कुराते हुए, थैली घुमाते, आखों से ओझल हो गए ओर वो फिर चौराहे पर..
"मुहोब्बत ले लो, मुहोब्बत.. ताज़ी-ताज़ी मुहोब्बत.."
ए लड़की, भाग यहां से.. नेता जी की रैली है.
नेता की रैली? फिर तो आज सारी मुहोब्बत बिक जाएगी.. रहने दो ना थानेदार साब, मेरी मुहोब्बत बिक जाएगी..
जनता: "नेता जी अमर रहे..
जब तक सूरज चांद रहेगा, नेता जी का नाम रहेगा.
मै: नेता जी "मुहोब्बत ले लो, मुहोब्बत.. ताज़ी-ताज़ी मुहोब्बत.."
नेताजी : बिलकुल, तुम देश का भविष्य हो.. हम मार्गदर्शन कर्ता हैं, पिता है. जनता हमारी संतान है..
सुनो बिटिया, ये सारी मुहोब्बत सरकारी कोष में डाल दो..
सरकारी कार्यवाही के बाद तुम्हें तुम्हारा हक मिलेगा..
भीड़ मे चुपचाप निकल ली, और मंदिर की सीढ़ी पर थक कर बैठ गई..
"मुहोब्बत ले लो.. मुहोब्बत...ता.."
अरे पगली, प्यार बोल प्यार..
क्यों अम्मा?
झल्ली, ये मंदिर है, मस्जिद नही, यहां इश्क - मुहोब्बत नही, प्रेम -प्यार बिकता है..
ओह, ऐसा? "प्रेम लेलो प्रेम.. ताज़ा ताज़ा प्रेम"
हरी ओम.. बेटी कुटीया के भीतर मैं प्रेम लेता हूं.
मेरा पुत्र विदेशों मे प्रेम बेचता है.. आओ.. चलो प्रेम दान करदो अपना..
बापू.. दान कर दुंगी तो पैसा कहां मिलेगा?
घर मे अंधी मां, लंगड़ी बहन, छोटा भाई और बीमार बूढा बाप है.. नही-नही दान नही..
शाम तक, थकी हारी मैं, चलती हुइ, पहुंच गइ ऱौशनी की नगरी में..
" इश्क लो, मुहोब्बत लो, प्रेम लो, प्यार लो.. "
हा..हा..हा.. ए लड़की.. यहां क्या कर रही है?
भूख लगी है, सुबह से आधा किलो मुहोब्बत बिकी है..
हाहा.. तू सही जगह पहुंची है अब.. चल पहले कुछ खा ले, नहा ले, सज-संवर जा.. 20 मिनट में तेरा सारा प्यार ऊंचे दामों पर बिकेगा..
अच्छा?
मैने खूब खाया, जरी वाली रंगीन फ्रॉक पहनी और उसके कहने पर.. इंतज़ार किया..
थोड़ी देर मे वो साब आया.. मुस्कुरा कर पूछा
कैसी हो?
मैं यूं ही देखती रही.. और वो प्यार खरीदता रहा..
मेरा सारा प्यार बिक गया.. और साब ने मुझे कुछ दिया..
तोहफा देख मैं हंस पड़ी..
अरे? तुम हंसी क्यों? तुम्हारे लिये लाया हूं.. तुम खास हो.. रास्ते मे मिली थी एक तुम्हारे उमर की लड़की..
ताज़ी है, तुम्हारे लिए सिर्फ..
पूछोगी नही? क्या है?
नही.. मैं जानती हूं, ये क्या है?
अच्छा? क्या?
"वोही.. आधी किलो मुहोब्बत..."
ऐ लडकी? कैसी दी ये मुहोब्बत?
ले लो साब, ताजी है, बीवी को देना, बहन को देना, बेटी को देना, सच्ची है..
हुंह, नही-नही, ये तो उसके लिए है.. ला! ज़रा आधा किलो देदे..
बाबूजी मुस्कुराते हुए, थैली घुमाते, आखों से ओझल हो गए ओर वो फिर चौराहे पर..
"मुहोब्बत ले लो, मुहोब्बत.. ताज़ी-ताज़ी मुहोब्बत.."
ए लड़की, भाग यहां से.. नेता जी की रैली है.
नेता की रैली? फिर तो आज सारी मुहोब्बत बिक जाएगी.. रहने दो ना थानेदार साब, मेरी मुहोब्बत बिक जाएगी..
जनता: "नेता जी अमर रहे..
जब तक सूरज चांद रहेगा, नेता जी का नाम रहेगा.
मै: नेता जी "मुहोब्बत ले लो, मुहोब्बत.. ताज़ी-ताज़ी मुहोब्बत.."
नेताजी : बिलकुल, तुम देश का भविष्य हो.. हम मार्गदर्शन कर्ता हैं, पिता है. जनता हमारी संतान है..
सुनो बिटिया, ये सारी मुहोब्बत सरकारी कोष में डाल दो..
सरकारी कार्यवाही के बाद तुम्हें तुम्हारा हक मिलेगा..
भीड़ मे चुपचाप निकल ली, और मंदिर की सीढ़ी पर थक कर बैठ गई..
"मुहोब्बत ले लो.. मुहोब्बत...ता.."
अरे पगली, प्यार बोल प्यार..
क्यों अम्मा?
झल्ली, ये मंदिर है, मस्जिद नही, यहां इश्क - मुहोब्बत नही, प्रेम -प्यार बिकता है..
ओह, ऐसा? "प्रेम लेलो प्रेम.. ताज़ा ताज़ा प्रेम"
हरी ओम.. बेटी कुटीया के भीतर मैं प्रेम लेता हूं.
मेरा पुत्र विदेशों मे प्रेम बेचता है.. आओ.. चलो प्रेम दान करदो अपना..
बापू.. दान कर दुंगी तो पैसा कहां मिलेगा?
घर मे अंधी मां, लंगड़ी बहन, छोटा भाई और बीमार बूढा बाप है.. नही-नही दान नही..
शाम तक, थकी हारी मैं, चलती हुइ, पहुंच गइ ऱौशनी की नगरी में..
" इश्क लो, मुहोब्बत लो, प्रेम लो, प्यार लो.. "
हा..हा..हा.. ए लड़की.. यहां क्या कर रही है?
भूख लगी है, सुबह से आधा किलो मुहोब्बत बिकी है..
हाहा.. तू सही जगह पहुंची है अब.. चल पहले कुछ खा ले, नहा ले, सज-संवर जा.. 20 मिनट में तेरा सारा प्यार ऊंचे दामों पर बिकेगा..
अच्छा?
मैने खूब खाया, जरी वाली रंगीन फ्रॉक पहनी और उसके कहने पर.. इंतज़ार किया..
थोड़ी देर मे वो साब आया.. मुस्कुरा कर पूछा
कैसी हो?
मैं यूं ही देखती रही.. और वो प्यार खरीदता रहा..
मेरा सारा प्यार बिक गया.. और साब ने मुझे कुछ दिया..
तोहफा देख मैं हंस पड़ी..
अरे? तुम हंसी क्यों? तुम्हारे लिये लाया हूं.. तुम खास हो.. रास्ते मे मिली थी एक तुम्हारे उमर की लड़की..
ताज़ी है, तुम्हारे लिए सिर्फ..
पूछोगी नही? क्या है?
नही.. मैं जानती हूं, ये क्या है?
अच्छा? क्या?
"वोही.. आधी किलो मुहोब्बत..."
Published on September 17, 2013 06:54
No comments have been added yet.


