हर बार..
हर बात पर पूछ लिया "कोइ और तो नही"कभी तो अपने नश्तर-ए-अलफाज़ देखता,हर बात पर कह दिया "तू सिरफिरा है"कभी तो मेरा जुनून-ए-मुहोब्बत देखता
तुझे देखा नंगी ऑखो से मैनेइश्क को तमाचा जमाते हुएमेरी हथेली पर खिंचे हमसफरतेरी हथेती के सुर्ख निशां तो देखता,
हर बात पर पलट बैठा पुराने पन्नो के हिसाबहर पन्ने पर लिखा अपना नाम तो देखताहर बात पर भर लेती हूं सिस्कीयां,यह इल्ज़ाम है तेरा,हर सिस्की में भरी सांस के पैगाम देखता,
जा, कर दिया आज़ाद तुझेमुहोब्बत की उल्झनो सेहर बात पर खिसकती रेत कासैलाब तो देखता
हर बार ज़ख्म दे कर छोड़ दिया यूं ही,हर बार के दर्द की तासीर तो देखता,हर बात पर पूछ लिया "कोइ और तो नही"कभी झांक कर अपना गिरेबां देखता,कभी खुद ही का अंदाज़-ए-बयां देखता..
©हिमाद्री
Published on July 02, 2013 21:49