तेरी बाहों का आसरा..


बिखर जाती हूँ मैं,हर एक शब्द में ऐसे,जैसे तेरी बाहों का,आसरा मिल गया हो,जब भी लिखती हूँ,कहानी तेरे लफ़्ज़ों की,हंसती है ख़ामोशी,जैसे ज़र्रा हिल गया हो,कलम थिरकती है मेरी,स्याह करने कागज़ के बदन को,देख किस्सों की अंगडाई जैसे,बारिश का समां हो,वो हंसती है, रिझाने तुझको,झांके कभी सिरहाने से,वो किरदार है मेरी कलम की ,फिर मांगे क्यूँ साँसे,तुझ बेपरवाह दीवाने से?चल हट!मुझसे ना कर बातें ऐसी,इश्क तुझे हो गया हो, बिखर न जाऊं शब्दों में ऐसे,जैसे तेरी बाहों का मुझे आसरा मिल गया हो… 
- हिमाद्री 
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Published on May 14, 2013 11:34
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