काश फिर मिलने की वो वजह मिल जाये







काश फिर मिलने की वो वजह मिल जाये,तेरे संग बिताये वो पल मिल जाये बातों बातों में जो बालियाँ कानो की खींची थी,रोई थी जब मैं, गीली आँखे मींची थी,कान पकड़ कर वैसे फिर से मुझे मनाये,काश फिर मिलने की वजह मिल जाए,
पुलिया पर लटकते हमारे पाँव,सपनो की दुनिया का चक्कर लगाते,चूंटी काट फिर तुम मुझे,वापस यहीं ले आते थे,कब, कैसे, बादलों की गुडिया बना देते तुम,जो पूंछू मैं, तो मुंह बना देते थे,वो बादलों की गुड़िया मिल जाये,काश फिर मिलने की वजह मिल जाए … 

आज कमर से भी लम्बी है मेरी चोटी ,पर खींचने वाले तुम नहीं,देखती हूँ तुमको कभी, छुप कर, यूँ ही,पर बचपन वाला यूँ नहीं,कद बड़ा तो बढ़ गए फासले भी ,न कच्ची कैरियां, ना वो त्योरियां अब,कान की बालियाँ कभी जो खिंच जाए,वो सिसकियाँ कहे,काश फिर मिलने की वजह मिल जाए ...
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on May 13, 2013 12:53
No comments have been added yet.