दरभंगा हाउस
दरभंगा हाउस
भारतीय इतिहास के पुरातन पन्नों को पलटते हुए, जब हम महाजनपद काल तक पहुँचते हैं, तो वहाँ हमें सोलह महाजनपदों का उदय होते दिखता है। इन सोलह महाजनपदों में मगध एक शक्तिशाली एवं अति महत्वपूर्ण महाजनपद के रूप में उभरा। मगध साम्राज्य की राजधानी को हम पाटलिपुत्र के नाम से जानते हैं, वर्त्तमान में यही पाटलिपुत्र शहर बिहार राज्य की राजधानी पटना के रूप में विकसित हुई। कलकल करती हुई गंगा नदी के किनारे स्थापित ये पटना शहर, अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, खूबसूरती और राजनितिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
यूँ तो पटना शहर कई पुरातन और ऐतिहासिक भवनों का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु गंगा घाट पर स्थित “दरभंगा हाउस” एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना पेश करती है। पटना शहर के कारगिल चौक से पटना यूनिवर्सिटी की दिशा में एक किलोमीटर की दूरी तय करने पर नजर आती है, लाल और पीले रंग की ऐतिहासिक ईमारतें, जिन्हें हम दरभंगा हाउस के नाम से जानते हैं। दरभंगा हाउस, दरअसल एक ऐतिहासिक राजभवन है, जिसका एक नाम नवलखा पैलेस भी है। इसका निर्माण दरभंगा के महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह ने 1880 में करवाया था। महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह, बिहार के बड़े राजाओं में गिने जाते थे, जिनका साम्राज्य दरभंगा और उसके आस-पास के इलाकों में वृहद रूप से फैला था, जिसे मैथिल साम्राज्य भी कहा जाता है। सन 1880 में उन्होंने पटना के गंगा घाट पर लगभग बीस बीघा जमीन खरीद कर, इस महल का निर्माण करवाया था। इस महल का नक्सा ब्रिटिश वास्तुकार चार्ल्स मांट ने बनाया था, और उन्हीं की देखरेख में सुर्खी और चूने के इस्तेमाल से इस भवन का निर्माण किया गया। इस भवन के दीवारों और पायों पर जगह-जगह मतस्य की कृति अंकित है, जो मैथिल साम्राज्य एवं दरभंगा महाराज का राजकीय चिन्ह है। ये ईमारत ब्रिटिश और मुग़ल वास्तु-शैली का खूबसूरत सामंजस्य है।
दरभंगा हाउस की ईमारत को मूलतः तीन हिस्सों में बाँट कर बनाया गया है। एक हिस्सा राजा ब्लॉक, एक रानी ब्लॉक और एक रिसेप्शन एरिया कहलाता है। राजा ब्लॉक में महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह रहते थे, वहीँ रानी ब्लॉक में उनकी महारानी और दासियाँ रहा करती थी। इस दोनों ब्लॉकों को जोड़ने के लिए एक मुख्य द्वार तो है हीं, पर एक अंदरूनी गलियारा भी है। इन दोनों ब्लॉक्स के अलावा जो तीसरा हिस्सा रिसेप्शन रूम या एरिया था वो अब दिखाई नहीं देता। चौड़े खूबसूरत गलियारों, बड़े-बड़े कमरों और गंगा नदी को निहारती बड़ी-बड़ी खड़कियाँ और बरामदे, इस महल को खूबसूरती हीं नहीं अपितु सुकून भी प्रदान करती हैं।
दरभंगा हाउस जहां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशिष्ट है, वहीँ इसकी जड़ें धार्मिक आस्था से भी जुड़ी हुई हैं। दोनों ब्लॉक के बीच माँ काली का एक डेढ़ सौ साल पुराना मंदिर है। महल के गर्भगृह में अवस्थित इस मंदिर की विशेष मान्यता है, जहां माँ के दर्शन हेतु शक्ति के उपासक देशभर से पहुँचते हैं। किवदंतियों की माने तो ऐसा कहा जाता है कि महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह संतानविहीन थे, और किसी उपासक के कथनानुसार उन्होंने पूरे देशभर में माता महाकाली के एक सौ आठ मंदिरों का निर्माण करवाया, जिसके फलस्वरूप उन्हें महाराजा कामेश्वर सिंह के रूप में संतान की प्राप्ति हुई। महाराजा कामेश्वर सिंह भी अपने समय के बहुत हीं प्रतापी शासक हुए, साथ हीं उन्हें शक्ति के अखंड उपासकों में भी गिना जाता है। महाराजा कामेश्वर सिंह का मुख्य महल ऐसे तो दरभंगा राज में अवस्थित है, परन्तु वो जब भी पटना में होते तो गंगा नदी में स्नान कर, इसी काली घाट की माता की पूजा कर अपनी दिनचर्या शुरू करते थे। शुरू-शुरू में ये मंदिर सिर्फ राज परिवार के सदस्यों के लिए हीं था, और आम जनता का यहां प्रवेश निषिद्ध था, पर बाद में इसे सार्वजनिकता प्राप्त हुई। ये मंदिर बलि-प्रथा के लिए भी प्रसिद्ध हुआ करता था, परन्तु कालांतर में बलि-प्रथा के विरोध के फलस्वरूप आश्विन मास के नवरात्रा के नवमी को छोड़कर यहां बलि वर्जित हो गयी। माँ के इस मंदिर में नारियल बलि के रूप में चढ़ाया जाता है, और दूर-दराज से श्रद्धालु यहां नारियल की बलि करने आते हैं।
दरभंगा हाउस जो सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत मानी जाती है, सन 1955 से उसका शैक्षणिक महत्त्व भी उभर कर सामने आया। साल 1950 में जब बिहार की मुख्य यूनिवर्सिटी, पटना यूनिवर्सिटी अपना क्षेत्रिये और शैक्षणिक विस्तार कर रही थी, तो स्नातकोत्तर अर्थात पीजी की क्लास के लिए उनके पास जगह की कमी हो रही थी। उस समय महाराजा कामेश्वर सिंह के द्वारा दरभंगा हाउस की भवन को यूनिवर्सिटी को सौंप दिया गया। ऐसे साल 1955 में यूनिवर्सिटी के विस्तार के लिए पटना यूनिवर्सिटी को बिहार सरकार की तरफ से पांच लाख की सहायता राशि मिली थी, और फिर सात लाख में दरभंगा हाउस पटना यूनिवर्सिटी की संपत्ति बन गया।
इस दरभंगा हाउस की ख्याति ऐसी रही कि यहां से निकले कई सारे छात्र एवं छात्राएं आईएएस और आईपीएस के रूप में पदस्थापित हुए। इन दो ब्लॉकों में से रानी ब्लॉक में मानवीय संकाय के विषयों की पढ़ाई एवं शोध कार्य होते हैं। जिनमें भाषा और दर्शन मुख्य विषय है। जहां निचले मंजिल पर हिंदी और फ़ारसी के विभाग है वहीं ऊपरी मंजिल पर बांग्ला, संस्कृत और मैथली भाषा के विभाग हैं। महाराजा कामेश्वर सिंह ने जब ये भवन शिक्षा हेतू यूनिवर्सिटी को दान दिया तो उन्होंने इस बात को भी सुनिश्चित किया, कि यहां मैथिली भाषा की भी पढाई हो। वहाँ दूसरी ओर राजा ब्लॉक में अंग्रेजी भाषा के अलावा सामाजिक विज्ञान के विषयों की पढ़ाई होती है। जिनमे अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति शास्त्र और व्यक्तिगत एवं औद्योगिक संबंध आदि विषयों पर शोधकार्य एवं पढ़ाई होती है।
यहां से पढ़ने वाले छात्रों ने तो समाज में अपनी एक सफल पहचान बनायीं हीं, साथ हीं यहां पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स भी काफी जाने-माने व्यक्तित्व रहे। श्री सैय्यद अस्करी जिन्हें हम पद्द्म श्री इतिहासकार के रूप में जानते है, वो दरभंगा हाउस के पीजी विभाग के हीं प्रोफेसर थे, साथ हीं के.के.दत्त, वी.सी.सरकार जैसे प्रोफेसर भी एक समय में इस जगह को शोभामान करते थे। ठंडी हवाओं और गंगा नदी की रमणीय खूबसूरती के सुसज्जित इस महल को सन 2015 में आये भूकंप ने थोड़ी क्षति पहुंचाई थी, परन्तु पटना यूनिवर्सिटी समयांतराल पर दरभंगा हाउस का जीर्णोद्धार करती रहती है। यूँ तो बिहार राज्य ऐतिहासिक रूप से बहुत हीं समृद्ध है, यहां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की कमी नहीं, अपितु दरभंगा हाउस या पटना का नवलखा राजमहल उन धरोहरों में एक बहुमूल्य रत्न सामान है, जिसकी ख्याति और चमक समय के साथ बढ़ती हीं चली गयी।
Manisha Manjari
भारतीय इतिहास के पुरातन पन्नों को पलटते हुए, जब हम महाजनपद काल तक पहुँचते हैं, तो वहाँ हमें सोलह महाजनपदों का उदय होते दिखता है। इन सोलह महाजनपदों में मगध एक शक्तिशाली एवं अति महत्वपूर्ण महाजनपद के रूप में उभरा। मगध साम्राज्य की राजधानी को हम पाटलिपुत्र के नाम से जानते हैं, वर्त्तमान में यही पाटलिपुत्र शहर बिहार राज्य की राजधानी पटना के रूप में विकसित हुई। कलकल करती हुई गंगा नदी के किनारे स्थापित ये पटना शहर, अपनी ऐतिहासिक धरोहरों, खूबसूरती और राजनितिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
यूँ तो पटना शहर कई पुरातन और ऐतिहासिक भवनों का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु गंगा घाट पर स्थित “दरभंगा हाउस” एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना पेश करती है। पटना शहर के कारगिल चौक से पटना यूनिवर्सिटी की दिशा में एक किलोमीटर की दूरी तय करने पर नजर आती है, लाल और पीले रंग की ऐतिहासिक ईमारतें, जिन्हें हम दरभंगा हाउस के नाम से जानते हैं। दरभंगा हाउस, दरअसल एक ऐतिहासिक राजभवन है, जिसका एक नाम नवलखा पैलेस भी है। इसका निर्माण दरभंगा के महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह ने 1880 में करवाया था। महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह, बिहार के बड़े राजाओं में गिने जाते थे, जिनका साम्राज्य दरभंगा और उसके आस-पास के इलाकों में वृहद रूप से फैला था, जिसे मैथिल साम्राज्य भी कहा जाता है। सन 1880 में उन्होंने पटना के गंगा घाट पर लगभग बीस बीघा जमीन खरीद कर, इस महल का निर्माण करवाया था। इस महल का नक्सा ब्रिटिश वास्तुकार चार्ल्स मांट ने बनाया था, और उन्हीं की देखरेख में सुर्खी और चूने के इस्तेमाल से इस भवन का निर्माण किया गया। इस भवन के दीवारों और पायों पर जगह-जगह मतस्य की कृति अंकित है, जो मैथिल साम्राज्य एवं दरभंगा महाराज का राजकीय चिन्ह है। ये ईमारत ब्रिटिश और मुग़ल वास्तु-शैली का खूबसूरत सामंजस्य है।
दरभंगा हाउस की ईमारत को मूलतः तीन हिस्सों में बाँट कर बनाया गया है। एक हिस्सा राजा ब्लॉक, एक रानी ब्लॉक और एक रिसेप्शन एरिया कहलाता है। राजा ब्लॉक में महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह रहते थे, वहीँ रानी ब्लॉक में उनकी महारानी और दासियाँ रहा करती थी। इस दोनों ब्लॉकों को जोड़ने के लिए एक मुख्य द्वार तो है हीं, पर एक अंदरूनी गलियारा भी है। इन दोनों ब्लॉक्स के अलावा जो तीसरा हिस्सा रिसेप्शन रूम या एरिया था वो अब दिखाई नहीं देता। चौड़े खूबसूरत गलियारों, बड़े-बड़े कमरों और गंगा नदी को निहारती बड़ी-बड़ी खड़कियाँ और बरामदे, इस महल को खूबसूरती हीं नहीं अपितु सुकून भी प्रदान करती हैं।
दरभंगा हाउस जहां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशिष्ट है, वहीँ इसकी जड़ें धार्मिक आस्था से भी जुड़ी हुई हैं। दोनों ब्लॉक के बीच माँ काली का एक डेढ़ सौ साल पुराना मंदिर है। महल के गर्भगृह में अवस्थित इस मंदिर की विशेष मान्यता है, जहां माँ के दर्शन हेतु शक्ति के उपासक देशभर से पहुँचते हैं। किवदंतियों की माने तो ऐसा कहा जाता है कि महाराजा लक्ष्मणेश्वर सिंह संतानविहीन थे, और किसी उपासक के कथनानुसार उन्होंने पूरे देशभर में माता महाकाली के एक सौ आठ मंदिरों का निर्माण करवाया, जिसके फलस्वरूप उन्हें महाराजा कामेश्वर सिंह के रूप में संतान की प्राप्ति हुई। महाराजा कामेश्वर सिंह भी अपने समय के बहुत हीं प्रतापी शासक हुए, साथ हीं उन्हें शक्ति के अखंड उपासकों में भी गिना जाता है। महाराजा कामेश्वर सिंह का मुख्य महल ऐसे तो दरभंगा राज में अवस्थित है, परन्तु वो जब भी पटना में होते तो गंगा नदी में स्नान कर, इसी काली घाट की माता की पूजा कर अपनी दिनचर्या शुरू करते थे। शुरू-शुरू में ये मंदिर सिर्फ राज परिवार के सदस्यों के लिए हीं था, और आम जनता का यहां प्रवेश निषिद्ध था, पर बाद में इसे सार्वजनिकता प्राप्त हुई। ये मंदिर बलि-प्रथा के लिए भी प्रसिद्ध हुआ करता था, परन्तु कालांतर में बलि-प्रथा के विरोध के फलस्वरूप आश्विन मास के नवरात्रा के नवमी को छोड़कर यहां बलि वर्जित हो गयी। माँ के इस मंदिर में नारियल बलि के रूप में चढ़ाया जाता है, और दूर-दराज से श्रद्धालु यहां नारियल की बलि करने आते हैं।
दरभंगा हाउस जो सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत मानी जाती है, सन 1955 से उसका शैक्षणिक महत्त्व भी उभर कर सामने आया। साल 1950 में जब बिहार की मुख्य यूनिवर्सिटी, पटना यूनिवर्सिटी अपना क्षेत्रिये और शैक्षणिक विस्तार कर रही थी, तो स्नातकोत्तर अर्थात पीजी की क्लास के लिए उनके पास जगह की कमी हो रही थी। उस समय महाराजा कामेश्वर सिंह के द्वारा दरभंगा हाउस की भवन को यूनिवर्सिटी को सौंप दिया गया। ऐसे साल 1955 में यूनिवर्सिटी के विस्तार के लिए पटना यूनिवर्सिटी को बिहार सरकार की तरफ से पांच लाख की सहायता राशि मिली थी, और फिर सात लाख में दरभंगा हाउस पटना यूनिवर्सिटी की संपत्ति बन गया।
इस दरभंगा हाउस की ख्याति ऐसी रही कि यहां से निकले कई सारे छात्र एवं छात्राएं आईएएस और आईपीएस के रूप में पदस्थापित हुए। इन दो ब्लॉकों में से रानी ब्लॉक में मानवीय संकाय के विषयों की पढ़ाई एवं शोध कार्य होते हैं। जिनमें भाषा और दर्शन मुख्य विषय है। जहां निचले मंजिल पर हिंदी और फ़ारसी के विभाग है वहीं ऊपरी मंजिल पर बांग्ला, संस्कृत और मैथली भाषा के विभाग हैं। महाराजा कामेश्वर सिंह ने जब ये भवन शिक्षा हेतू यूनिवर्सिटी को दान दिया तो उन्होंने इस बात को भी सुनिश्चित किया, कि यहां मैथिली भाषा की भी पढाई हो। वहाँ दूसरी ओर राजा ब्लॉक में अंग्रेजी भाषा के अलावा सामाजिक विज्ञान के विषयों की पढ़ाई होती है। जिनमे अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति शास्त्र और व्यक्तिगत एवं औद्योगिक संबंध आदि विषयों पर शोधकार्य एवं पढ़ाई होती है।
यहां से पढ़ने वाले छात्रों ने तो समाज में अपनी एक सफल पहचान बनायीं हीं, साथ हीं यहां पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स भी काफी जाने-माने व्यक्तित्व रहे। श्री सैय्यद अस्करी जिन्हें हम पद्द्म श्री इतिहासकार के रूप में जानते है, वो दरभंगा हाउस के पीजी विभाग के हीं प्रोफेसर थे, साथ हीं के.के.दत्त, वी.सी.सरकार जैसे प्रोफेसर भी एक समय में इस जगह को शोभामान करते थे। ठंडी हवाओं और गंगा नदी की रमणीय खूबसूरती के सुसज्जित इस महल को सन 2015 में आये भूकंप ने थोड़ी क्षति पहुंचाई थी, परन्तु पटना यूनिवर्सिटी समयांतराल पर दरभंगा हाउस का जीर्णोद्धार करती रहती है। यूँ तो बिहार राज्य ऐतिहासिक रूप से बहुत हीं समृद्ध है, यहां ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की कमी नहीं, अपितु दरभंगा हाउस या पटना का नवलखा राजमहल उन धरोहरों में एक बहुमूल्य रत्न सामान है, जिसकी ख्याति और चमक समय के साथ बढ़ती हीं चली गयी।
Manisha Manjari
Published on December 14, 2023 04:15
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