अगर मैं कहूँ...

 



मेरी पेंटिंग



ये वक्त जो हम साथ गुज़ारते हैं अनमोल है मेरे लिए। कभी बस यूं ही, चुपचाप शाम की ठंडी तासीर को ज़ज्ब करते हुए। तो कभी बस बातें ―बेवजह, बेमतलब की बातें। तकरीबन हर रोज़। इसी वक्त, इसी जगह पर। इसी पत्थर पर बैठकर। समंदर की मलंग सी लहरें जाने कितनी दफ़ा आती जाती रहती हैं। जैसे हमारी बातें सुनने आती हों। 

और तुम! तुम इस वक्त से भी ज़्यादा अजीज़ हो। मेरी तरफ आते हुए जैसे तुम मुस्कुराते हो तो मेरा एक अजीब सी खुशी से भर जाता है। जब तुम अपनी आंखें सिकोड़कर देखते हो तो मैं समझ जाती हूँ कि तुम मेरी बात स...

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Published on June 16, 2022 23:00
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