उन शांत आँखों में...









उन शांत आँखों में छुपा ये कैसा सैलाब है,

मुस्कुराते होंठों की परत के पीछे दर्द का एहसास है...

सुबह की खिलती धुप में रात भर की सिसकियों की आवाज़ है,

भीड़ में हर पल ढूंढता एकांत, ये मन्न इतना क्यों अशांत है...


एक पल कुछ चाहता है दूसरे ही पल दूर भागता है,

आंखें खुली हो या बंद, मन्न धोका पहचानता है...

फिर हर पल धोखा क्यों खाता है?

संभालता है, सब कुछ समेटता है और फिर निकलता है...

एक अंजनी सी चाह में, भीड़ में किसी अपने जैसे को पाने की आस में,


नअजाने कितनी ठोकरे मिलती है और कितने ही सपने भीकरते है,

पर ये मन्न कुछ ढीट है...

बिखरे सपनो को मोती समझ पिरो लेता है, ठोकरों पैर हंस चल देता है,

कुछ पूछो तोह कहता है की इन ठोकरों का अपना मज़ा है...

माना भीड़ में परेशान हु और खुद को मिलते धोखों से हैरान हु,


लेकिन ये भीड़, ये धोके, ये ठोकरें, येही सच है...

और ये सच मुझे स्वीकार है...

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Published on February 26, 2020 20:06
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