ए वक्त ,तू गवाह है

ऐ वक्त, तू गवाह है..कभी वो सजी हुई वैश्या सा बिछा है मेरे आगे..और ये भी तूने देखा है,कैसै सुबह के सूरज सा जला है वोदेखा है यह भी बनारस के पाखंडी सा घूनी रमाऔर जो फिर हर रात वोगले में इतर, होंठ लाल करएक नई कली मसलने चला..देखा है तूने मुझे भीउसके सिर को रखा है गोद मेंएक माँ की तरहऔर परोसा है खुद को मैनेभरे वॅक्षो से मेघ की तरहए वक्त ,तू गवाह हैवो बिछा है मेरे आगे,वेश्या की तरह..मुड़ा ना वो,गुजरा जब मेरे शामियाने से आगे, नज़रें बचाफिर भी गिरी उसकी निगाहेंकनखियों से हमपर के देख ना लूँ मैं कहींउसके कुर्ते पर पड़ेनयी कली के निशान..मेरे खरीदार ने निभाये हैंकिरदार कई,कभी मेरी तरह, कभी अपनी तरह...

5/1/2014
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Published on January 04, 2021 19:51
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