Post # 36

जीवन का सच



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समय वो नदी है, जो

बहती जाए, बहती जाए

नहीं किसी दरिया में समाए

जाने कब किसको बहा ले जाए





तन वो पूंजी है, जो

यूं तो रूह को है बसाए

पर कौन जाने, कौन बताए

कब ये किस मिट्टी मिल जाए





धन वो मैल है हाथ का

जाने कब किस पानी धुल जाए

फिर से आए, चित्त भर जाए

ना आए, दरिद्र कर जाए





मन वो पंछी है, जो

कभी कैद में ही फडफडाए,

कभी उडान भर के नभ छू आए

कभी काबू में है, कभी काबू कर जाए





संसार वो ठिकाना है अस्थायी,

जहां कोई पूरी सुविधा पाए

कोई मुश्किल से भूख मिटाए

पर जो भी आए, एक दिन जाए





बस एक रूह ही है अजर-अमर

एक तन छोडे, तो दूजे जाए

जो तन पाए, उस में जीवन भर दे

जो तन छोडे, उसे व्यर्थ कर जाए..

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Published on February 16, 2019 10:45
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