कहानी संख्या २
खूनी दरिंदे
अँधेरी अमावस की रात थी। तेज़ हवाएं चल रहीं थीं। दूर दूर तक कोई दिखाई न पड़ता था। वह चारों ऐसी काली रात में गांव से जाती सुनसान सड़क पर शहर के लिए निकले थे। बीच बीच में हवा का झोंका जब तेज़ होता तो सड़क के पास की झाड़ियों से सरसराहट की आवाज़ आती। जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी माहौल और डरावना होता जा रहा था। कभी कभी अचानक ऐसा लगता कि कहीं कोई चीख रहा है और फिर रात की ख़ामोशी उस आवाज़ को अपने आगोश में छुपा लेती। इस मनहूस काली रात में लोमड़ी के रोने की आवाज़ किसी अपशगुन की तरह लग रही थी। डर से थर थर कांपते हुए वह चारों पैदल चलते चले जा रहे थे। न जाने ऐसा कौन सा काम आ पड़ा था कि रात को ही जाना ज़रूरी था। वह चारों अभी कुछ ही दूर पहुंचे थे कि आसमान से उतरता हुआ एक अनजान साया तेज़ी से उन चारों की तरफ बढ़ा और इस से पहले कि उनमें से कोई कुछ समझ पाता वह एक आदमी को झप्पटा मार कर ऊपर उड़ा ले गया। बचे हुए तीनों आदमी अपनी जान बचाने के लिए भागे मगर गांव की मिटटी भी शायद आज उनकी बलि मांग रही थी। शैतानी साया जिस आदमी को उठा कर ले गया था थोड़ी ही देर में ज़मीन पर उसके परखच्चे गिरने लगे ऐसे जैसे किसी कौवे के मुंह से मांस के छीछड़े गिर रहे हों। फिर उस शैतानी साये ने एक एक कर के बाकी तीनों के भी परखच्चे उड़ा दिए। पूरी सड़क उन चारों के खून से सन चुकी थी। इतनी दर्दनाक मौत कि किसी की चीख भी न निकल पाई।
इस घटना से अनभिज्ञ पूरा गांव गहरी नींद में सोया हुआ था। कहीं किसी को कोई खबर न थी। सूरज रोज़ की भांति सुबह अँधेरे में ही उठा। वह रोज़ गांव से शहर दूध लेकर जाता था और इस काम के लिए उसे जल्दी उठना पड़ता था। आज भी वह नियम के अनुसार अपनी भैंसों का दूध टंकी में भर कर चलने की तैयारी करने लगा और दिन निकलते ही दूध की टंकी को साइकिल पर टांग कर शहर की तरफ रवाना हो गया ।
“भोर भाई जागो नन्द लाला…….” अपनी मस्ती में गाता गुनगुनाता हुआ सूरज साइकिल पर पैडल मारे जा रहा था।
गांव से जाती इस सड़क पर निकलने वाला वह पहला आदमी था। गांव के लोग वैसे भी शहर कम ही जाया करते थे। ऐसे चलते हुए उसे अभी कुछ ही देर हुई थी कि अपनी आँखों के सामने का नज़ारा देखकर उसकी चीख निकल गई। सड़क पर चारों तरफ मांस के छीछड़े बिखरे हुए थे। कोलतार की काली सड़क पर जैसे किसी ने लाल रंग की पच्चीकारी कर दी हो। हर तरफ खून ही खून। हवा में बूचड़खाने की जैसी बदबू समाई हुई थी। इतना भयानक नज़ारा देखकर सूरज को चक्कर आ गया और वह बेहोश हो कर वहीँ गिर पड़ा। उसका सारा दूध भी वहीँ फ़ैल गया ।
बहुत देर बाद जब तेज़ धूप मुंह पर पड़ने लगी तो सूरज को कुछ होश आया। शायद अभी तक कोई दूसरा इस सड़क से नहीं गुज़रा था। सूरज को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बार बार सड़क की तरफ देखता जैसे पहले जो देखा वह कोई धोखा हो मगर सड़क पर फैले मांस के छीछड़े वहां घटी अनहोनी की खुद गवाही दे रहे थे।
” बचाओ ! बचाओ!” पूरी तरह होश में आने के बाद चिल्लाते हुए सूरज अपनी साइकिल को तेज़ गति से चलाता हुआ वहां से गांव की तरफ भाग लिया।
सूरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और उहापोह की स्थिति में सीधे सुखिया के घर जा पहुंचा।
“सुखिया भैया ! सुखिया भैया ! दरवाज़ा खोलो,” सुखिया के घर का दरवाज़ा पीटते हुए सूरज चिल्लाने लगा।
“अरे सूरज तुम ! क्या हुआ तुम्हारे पसीने क्यों छूट रहे हैं ,” सुखिया ने दरवाज़ा खोलते ही कहा।
“अनहोनी हुई है सुखिया भैया। खून ! चारों तरफ खून है,” सूरज।
“अच्छा ! मगर यह दिलावर* तो नहीं हो सकता ,” सुखिया के मुंह से निकला।
अनहोनी होना इस गांव के लिए कोई नयी बात नहीं थी। दिलावर के भूत के आतंक से गांव वाले भली भांति परिचित थे। मगर दिलावर का भूत भी हर १२ साल बाद आता था और उसे गए अभी १ महीना भी नहीं बीता था। सुखिया के मन में भी शायद यही विचार चल रहे थे।
सुखिया ने फ़ौरन अपनी जीप निकली और सूरज को लेकर वह दृश्य देखने गया। विभित्स दृश्य को देखकर सुखिया के भी होश उड़ गए।
यह मंज़र देखते ही सुखिया ने अपनी जीप मोड़ ली और सीधे पुजारी जी के पास जा पहुंचा। पुजारी जी को पूरी घटना से अवगत करवा कर सुखिया पुजारी जी और कुछ अन्य गांव वालों के साथ रात की तैयारी करने में जुट गया। कोई नहीं जानता था कि इस घटना को किसने अंजाम दिया था मगर तैयारी करना तो ज़रूरी ही था। सुखिया ने बन्दूक, चाकू, जंजीर जैसे उपकरण अपनी जीप में रख लिए और थे और अब बस रात का इंतज़ार था।
जैसे जैसे समय गुज़र रहा था रात का साम्राज्य स्थापित होता जा रहा था। कोई नहीं जानता था कि आने वाली रात अपने साथ क्या लाने वाली थी। हर तरफ डर का माहौल था। रात होते ही गांव के सभी लोगों ने खुद को अपने अपने घर में क़ैद कर लिया। हर तरफ सन्नाटा था। बस सुखिया अपनी जीप में पुजारी जी और कुछ लोगों के साथ पूरे गांव की निगरानी कर रहा था।
अभी तक सारा माहौल शांत था मगर न जाने कैसे अचानक तेज़ हवायें चलने लगीं। शैतानी ताकत की मौजूदगी से जीप में सवार सुखिया और बाकि लोग एकदम चौकन्ने हो गए और चारों तरफ ध्यान से देखने लगे।एकाएक एक अनहोनी अजीब घटना ने उन सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उन लोगों ने देखा कि एक शैतानी साया सूरज की एक भैंस को उठा कर हवा में ऊपर लेजा रहा है। भैंस को ऊपर लेजाकर उस साये ने भैंस के दो टुकड़े और कचर कचर कर के उन्हें खाने लगा। जैसे जैसे वह भैंस को खाता जाता, मांस के छीछड़े आसमान से नीचे टपकते जाते। एक भैंस का काम तमाम करने के बाद वह शैतानी साया इसी तरह से दूसरी भैंस को उठा लाया और उसके भी दो टुकड़े कर के उसे खाने लगा।
यह बहुत ही भयानक दृश्य था जिसे देख पाना हर आदमी के बस की बात नहीं थी। सुखिया ने हालत की गंभीरता को समझते हुए फ़ौरन ही जीप की हेडलाइट उस साये के ऊपर फोकस कर दी।
पुजारी जी इस मंजर को देख कर हतप्रभ थे। उन्होंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। सुखिया को कुछ नहीं सूझा तो उसने ज़ंजीर को बहुत तेज़ी से घुमाते हुए उस शैतानी साये की तरफ फेंका जिस से उस शैतानी साये को तो कोई फर्क नहीं पड़ा पर उसकी नज़र इन लोगों पर पड़ गयी। उसने भैंस को वहीँ पटक दिया और तेज़ी से उड़ता हुआ आया और जीप में से एक आदमी को उठा के ऊपर ले गया। सुखिया ने कई गोलियां चलाईं मगर साये को कुछ नहीं हुआ।
इस दरम्यान पुजारी की हाथ में माला पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से किसी मंत्र का जाप कर रहे थे। उस आदमी को खतम कर के वह साया फिर से जीप की तरफ झपटा मगर इस बार किसी आदमी को उसके द्वारा उठाए जाने से पूर्व ही पुजारी जे ने माला उस शैतानी साये की तरफ फेंकी जो आश्चर्यजनक रूप से सीधे उसके गले में जाकर गिरी।
“मुझ छोड़ दो ! मुझे छोड़ दो,” अभी तक खुनी तंदर मचाने वाला वह भयानक साया गए में माला गिरते ही भेद की तरह मिमयाने लगा।
“दुष्ट ! पापी ! अधर्मी ! छोड़ दूँ तुझे। बता कौन है तू ? कहाँ से आया है ? बता नहीं तो अभी भस्म कर दूंगा तुझे ,” पुजारी जी ने ज़ोर से पूछा।
” मैं ठाकुर का भूत हूँ। पुरानी हवेली में सोया हुआ था मगर उस रात दिलावर के भूत से लड़ते लड़ते गांव वालों ने मुझे जगा दिया था। मुझे छोड़ दो ,” शैतानी साये ने कहा।
पुजारी जी मन ही मन कुछ जाप करने लगे। वह शायद ठाकुर के भूत को मुक्ति करना चाहते थे। मगर अचानक न जाने क्या हुआ। पंडित जी का सर एकाएक बम की तरह फट पड़ा और उनका जिस्म तड़फड़ाता हुआ जमीन पर जा गिरा। फिर एकाएक कई सारे साये जीप में सवार आदमियों को झपट झपट कर कचर कचर करके गाजर मूली की तरह खाने लगे। पूरी जीप खून से भर चुकी थी। ऐसे में भी सुखिया ने हिम्मत नहीं हारी और किसी तरह खुद को बचाते हुए छिपते छुपाते वहां से निकल गया और मंदिर में पहुंचकर सुबह होने का इंतज़ार करने लगा।
उधर सुखिया सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था और दूसरी तरफ उन खुनी दरिंदों ने पूरे गांव में कोहराम मचा रखा था। हर तरफ लाशें ही लाशें। हर तरफ खून ही खून । आज शायद इस गांव में कोई ज़िंदा नहीं बचना था। एक साथ इतने सारे खूनी दरिंदे कोई सोच भी नहीं सकता था।
सुबह सूरज निकलने के बाद सुखिया जब मंदिर से बाहर आया तो पूरा गांव खाली हो चुका था। हर घर के बाहर लाशें पड़ी थी। अगर सुखिया ने आज कुछ न किया तो कल यह दरिंदे किसी दूसरे गांव को निशाना बना सकते थे। पूरी इंसानियत का वजूद सुखिया के जिम्मे था, वह यूँहीं हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठ सकता था।
यही सोच कर सुखिया दौड़ कर अपनी जीप तक पहुंचा उसमे पड़ी लाशों को जीप से नीचे उतरा और फिर खून से लथपथ जीप को लेकर सीधे गंगा घाट पर मौजूद साधु बाबा की कुटिया में गया।
“साधू बाबा आज मानवता खतरे में है,” कुटिया में पहुंचकर सुखिया ने वहां के शीर्ष बाबा से प्रार्थना करते हुए कहा।
“ऐसा क्या हुआ बालक ,” बाबा ने उत्सुकता पूर्वक पूछा।
इसपर सुखिया ने सारी घटना की जानकारी बाबा को दे दी।
“यह तो बहुत गंभीर समस्या है। हमें तुरंत वहां जाना होगा ,” बाबा के मुख पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती थीं।
फिर करीब ६-७ बाबा सुखिया के साथ उसके गांव की तरफ प्रस्थान कर गए।
गांव में पहुँचते ही एक बाबा ने मंदिर के अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की औरबाकि बाबाओ और सुखिया को उस अग्नि के इर्द गिर्द बैठा कर हवन करना प्रारम्भ कर दिया। बाबा का हवन जैसे जैसे पूर्णता की तरफ अग्रसर होता जा रहा था गांव एक सुनहरे गोले में कैद होता जा रहा था।
“हमने इस गांव को मन्त्रों के जाल में बाँध दिया है , जब तक इस कुंड में अग्नि प्रज्वलित रहेगी कोई शैतानी ताक़त इस गांव से बाहर नहीं जा सकेगी ,” हवन क्रिया को पूर्ण करने के बाद बाबा ने कहा।
सबने हवन कुंड में बहुत साड़ी सामिग्री दाल दी जिस से कि अग्नि पर्याप्त समय तक कुंड में धधकती रहे। इतना करते करते दिन ढल गया और फिर रात के अँधेरे में खुनी साये पूरे गांव में मंडराने लगे।
सही मौका देख कर सुखिया और सारे बाबा भी मंदिर प्रांगड़ से बहार आ गए। जब खुनी दरिंदों ने इंसान को देखा तो खून की प्यास बुझाने के लिए लपके। मगर इस चुनौती के लिए साधू भी तैयार थे। बाबा ने अपने हाथ में हवन कुंड की भसम ली हुई थी जिसे खुनी दरिंदों के पास आते ही किसी मंत्र का जाप करते हुए बाबा ने हवा में उछाल दिया। इस से वह एक दम से बिलबिला गए और अपने बहुत ही भयानक रूप में आ गए । आसमान में बिजली कडकडाने लगी। दूसरी तरफ बाबा भी किसी मंत्र का जाप किये जा रहे थे।
खुनी साये बहुत कोशिश करके भी किसी बाबा को छू नहीं पा रहे थे। फिर उन दरिंदों ने भयानक भयानक आवाज़े निकलना शुरू कर दिया जिससे एक पल के लिए एक बाबा घबरा गए।उन नर पिशाचों को तो बस एक पल की ही दरकार थी। उन्होंने उस बाबा को वहीँ धराशाई कर दिया। लेकिन अब तक बाकी बाबाओं का मन्त्रों का जाप पूरा हो चुका था। उन्होंने अपने कमंडल के जल लेकर जैसे की भूतों पर फेंका तो सारे भूत सिकुड़ने लगे। बस इसी मौके की तो दरकार थी, सुखिया ने उन भूतों को बाबा की दी हुई बोतलों में कैद कर लिया।
इस लड़ाई को चलते हुए पूरी रात गुज़र गयी। सुबह सवेरे सुखिया बाबा को उनके आश्रम में छोड़ आया जहाँ मृत बाबा का अंतिम संस्कार किया गया और पकडे गए भूतों को मुक्ति मिलने तक के लिए सुरक्षित रख दिया गया।
सुखिया का गांव बर्बाद हो चुका था, अब वापस जाने का भी कोई मतलब नहीं था, मगर उसने दिलावर से बदला लेने की जो कसम खाई हुई थी उसके लिए उसे वापस जाना ही था।
*नोट :- दिलावर के बारे में जानने के लिए मासिक कहानी संख्या १ (डर ) पढ़ें।