looping in audio

लिखना मुझे सबसे आसान लगता है। वक़्त की क़िल्लत कुछ उम्र भर रही है, ऐसा भी लगता है। क्रीएटिव काम की बात करें तो लिखने की आदत भी इतने साल से बनी हुयी है कि आइडिया आया तो लिखने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। टाइपिंग स्पीड भी काफ़ी अच्छी है।

कॉलेज में बेसिक विडीओ एडिटिंग का कोर्स किया था। उन दिनों vhs टेप इस्तेमाल होते थे। सीखते हुए थ्योरी में सिनेमा की रील को कैसे एडिट करते हैं वो भी सीखा था और सर ने कर के दिखाया भी था। फ़िल्में बनाऊँगी, ऐसा सोचा था, ज़िंदगी के बारे में। 
मगर कुछ ऐसा कुयोग होता रहा हमेशा कि फ़िल्म्ज़ ठीक से बन नहीं पायी। विडीओ कैमरा ख़रीदा था तो उसके पहले महीने में ही चोरी हो गया, उसके छह महीने बाद तक मैंने उसकी मासिक किश्त भरी। बैंगलोर में एक आध बारी कुछ ग्रूप्स के साथ फ़िल्म बनाने का वर्कशॉप किया, सिर्फ़ इसलिए कि कोई तो मिलेगा जिसके साथ काम करने में अच्छा लगे... लेकिन एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिससे मेंटल लेवल मैच करे। इसके बाद कई दिनों तक सोचती रही कि मैं मेंटल ही हूँ। 
मैकबुक इस्तेमाल करना शुरू किया तो देखा कि बेसिक एडिटिंग के लिए iMovie बहुत अच्छा है। इसमें विडीओ और ऑडीओ एडिटिंग के लिए आसान टाइमलाइंज़ हैं। साथ में गराज़ बैंड भी इस्तेमाल किया। ये एक बहुत ही अच्छा ऑडीओ एडिटिंग सॉफ़्ट्वेर है जिसमें पहले से कई ट्रैक्स लोडेड हैं। इन्हें ऐपल लूप्स कहते हैं। जब पहली बार देखा था तब कभी कभार एडिटिंग की थी।
विडीओ एडिटिंग का सबसे मुश्किल हिस्सा होता है म्यूज़िक। बीट्स सही जगह होनी चाहिए, संगीत का उतार चढ़ाव एक पूरी पूरी कहानी कहता है। विडीओ के साथ इसे तरतीब का होना ज़रूरी होता है। स्ट्रेंज्ली, बहुत कम एडिटर्ज़ को संगीत की बहुत अच्छी समझ होती है। मैंने ज़ाहिर है, बहुत अच्छे एडिटर्ज़ के साथ काम नहीं किया है। इवेंट मैनज्मेंट के दौरान जो छोटे विडीओज़ बनते थे या फिर इंडिपेंडेंट फ़िल्म बनाते हुए मैंने देखा है कि वे बीट्स का या संगीत के उतार चढ़ाव का ठीक ख़याल नहीं रख रहे। मैंने शास्त्रीय संगीत सात साल सीखा है जिसका कुछ भी याद नहीं लेकिन ताल की समझ कुछ ingrained सी हो गयी है। जैसे कि ग्रामर की समझ। मैं नियम नहीं बता सकूँगी कि कोई वाक्य क्यूँ ग़लत है…लेकिन दावे के साथ कह सकती हूँ कि ग़लत फ़ील हो रहा है तो ग़लत होगा… यही बात संगीत के साथ है। महसूस होता है कि गड़बड़ है। लेकिन ऐसा कोई ऑडीओ मिक्सिंग का कोर्स नहीं किया है तो इसमें ज़्यादा चूँ चपड़ नहीं करती। 
हमारे पास जो नहीं होता है, उसका आकर्षण कमाल होता है। मैं बचपन से बहुत तेज़ बोलती आयी हूँ और आवाज़ की पिच थोड़ी ऊँची रहती है। ठहराव नहीं रहा बिलकुल भी। तो मुझे रेडीओ की ठहरी हुयी, गम्भीर आवाज़ें बहुत पसंद रहीं हमेशा। वे लोग जो अपनी आवाज़ का सही इस्तेमाल जानते थे वो भी। मुझे हमेशा आवाज़ों का क्रेज़ होता। कोई पसंद आता तो उसकी आवाज़ पे मर मिटे रहते। उसे देखने की वैसी उत्कंठा नहीं होती, लेकिन आवाज़ सुने बिना मर जाती मैं। 
पाड्कैस्ट पहली बार बनाया था तो ब्लॉग के दोस्तों ने बहुत चिढ़ाया था। इतना कि फिर सालों अपनी आवाज़ रेकर्ड नहीं की… आवाज़ पर काम नहीं किया। ये कोई दस साल पहले की बात रही होगी। हम जो भी काम नियमित करते हैं, उसमें बेहतर होते जाते हैं। इतने साल अगर कहानी पढ़ना या सुनाना किया होता, तो बेहतर सुनाती या पढ़ती। फिर मैंने अंकित चड्डा को सुना… और लगा कि नहीं, कहानियाँ सुनाने में जो जादू होता है, वो शायद लिखने में भी नहीं होता। पर्सनली मैंने कई बार लोगों को कहानी सुनायी है, क्यूँकि वे अक्सर कहते हैं कि मेरी किताब या मेरी कहानियाँ उन्हें समझ नहीं आतीं। कुछेक स्टोरीटेलिंग सेशन किए बैंगलोर में और लोगों को बहुत पसंद आए। मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और सोचा कि इसपर थोड़ा बारीकी से काम करूँगी। लेकिन फिर मूड, मन, मिज़ाज और इस शहर में वैसा ऑडीयन्स नहीं मिला जो मैं तलाश रही थी। मन नहीं किया आगे कहानी सुनाने का… फिर कुछ जिंदगी की उलझनें रहीं।
अब फिर से कहानी सुनाने का मन करता है। कहानियों की विडीओ रिकॉर्डिंग करके उन्हें चैनल पर पोस्ट करने का भी। सबसे मुश्किल होता है म्यूज़िक। कि ख़रीदने पर म्यूज़िक काफ़ी महँगा मिलता है और समझ भी नहीं आता कौन सा म्यूज़िक ख़रीदें। आज यूट्यूब पर गयी तो देखा कि बहुत सारा म्यूज़िक फ़्री अवेलबल है। साउंड्ज़ के नाम और genre भी थे तो चुनना आसान है। 
एक सिम्पल सा डेढ़ दो मिनट का विडीओ बनाने में भी लगभग चार से पाँच घंटे तो लगते ही हैं। फिर ये भी लगता है कि किसी से कलैबरेट कर लेना बेहतर होगा। कि हम बाक़ी काम करें, कोई ऑडीओ एडिट कर दे, बस। मगर तब तक, ये गराज़ बैंड के ऑडीओ लूप्स अच्छे हैं और youtube पर के ये साउंड क्लिप्स भी। 
बाक़ी देखें। कुछ शुरू करके अधूरा छोड़ देने के एक्स्पर्ट हैं हम। 
इसलिए उन लोगों के लिए डर लगता है जिनसे मुहब्बत होती है हमें। कि शुरू करके छोड़ जाने के बाद वो कितने अधूरे रह जाते होंगे, पता नहीं।
मैं अपनी आवाज़ तक लौट रही हूँ, आप मुझे यहाँ सुन सकते हैं।

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Published on April 18, 2020 12:48
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