मेरे नाना साहब की लिखी एक बहुत पुरानी नज़्म. उस ज़माने में वो लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे. उम्र क़रीब 22 साल रही होगी (नज़्म पे तारीख़ 1938 लिखी है). ये तो नहीं मालूम कि नज़्म में किस कश्मकश का ज़िक्र है लेकिन कुछ अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1941 तक वो ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के जनरल सेक्रेटरी रह चुके थे और जंग-ए-आज़ादी में पूरी तरह शामिल होकर जेल चले गए.
बाक़ी, एक नौजवान का दिल तो था
Published on March 25, 2020 08:42