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कभी कभी जब अकेले रोती हूँ
तो रातो को भी तेरा इंतजार करती हूँ
कभी कभी, जब अकेले में सोती हूँ
तो खुद की उंगलियों से यु सिलवटे तेरी बना जाती हूँ
तेरे बाहों में सिमटना चाहती हूँ
कुछ देर ही सही, तुजसे दिल का हर राज कहना चाहती हूँ.
तू समझता नहीं मेरी पयास को
तू बस जलना जनता है
तू कभी आता नहीं बेवजह बेवकत रात को
तू सिरफ जलाना जो जनता है.
कुछ और गुफतगू: सूरज से गुफतगू #12
Published on September 14, 2019 04:32