मेरे शब्दों पे न जाओ के मैं कोई लेख़क नहीं मैं तो बस इक आवाज़ हूँ एक अनसुना सा आगाज़ हूँ मैं दबे हुए पन्नों में खोए हुए औंसुओ की धुंदली बुँदे हूँजो पलकों के झपकते ही ग़ुमनामी की सियाही में ग़ुम हो जाते है मैं अपनी ही धुन से
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Published on February 09, 2020 05:45