फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की इंक़लाबी नज़्म ‘बोल के लब आज़ाद हैं तेरे’ से प्रेरित होकर मैंने कुछ लिखा हैं.. बोल के लब आज़ाद हैं तेरे, कहते है फैज़.. बोल के ज़िन्दगी बाकि हैं अभी बोल की साँसों में सिरकते हैं तराने कई बोल के ये ज़िन्दगी तेरी हैं बोल के तेरा
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        Published on January 14, 2020 08:53