अली जवाद ज़ैदी साहब की एक नज़्म जो उन्होंने 1941 में लिखी थी, लखनऊ जेल में, जहाँ वो जंग-ए-आज़ादी में शामिल होने की वजह से क़ैद थे।
गोली के ज़द पे जम गऐ , सीनों को तान केतोपों के मुँह पे डट गऐ ,अंजाम जान केक्या वीर थे सुपूत वो हिन्दोस्तान के
कैसे ये मस्त लोग थे क्या नौजवान थेफौजों को अपने ध्यान में लाऐ नहीँ कभीदुश्मन के दिल नज़र में समाऐ नहीँ कभीमैदाँ से अपने पाऊँ हटाऐ नहीँ कभीकैसे ये मस्त लोग थे
Published on January 07, 2020 10:57