नित प्र्यासी मैं मौन और उपवासी मैं तन के भीतर ह्रदय के तार से अंतर मन के टूटे से एक द्वार से एक आवाज़ सी सुनाई आती है अपनी ही रूह में सिमटती हुई एक ओझल परछाई सी नज़र आती है मन विचलित तन कपकपाता हुआ ज़ेहन के हर तार
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Published on October 31, 2019 11:03