An addendum to Sarfaroshi?

चर्चा अपने क़त्ल का अब यार की महफ़िल में है
देखना है यह तमाशा कौन सी मंज़िल में है

देश पर क़ुरबान होते जाओ तुम, ए हिन्दीयों
ज़िंदगी का राज़ मुज़मिर खंजर-ए-क़ातिल में है

साहिल-ए-मक़्सूद  पर ले चल ख़ुदारा, नाख़ुदा
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है

दूर हो अब हिंद से तारीक़ी-ए-बुग़्ज़-ओ-हसद
बस यही हसरत, यही अरमाँ हमारे दिल में है

बाम-ए-रिफ़त पर चढ़ा दो देश पर हो कर फ़ना
बिस्मिल अब इतनी हवस
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on April 11, 2019 12:26
No comments have been added yet.