सेमल के मौसम में तोड़ना दिल...कि गिरे हुए सारे उदास फूल मेरे नाम हों

हमें बचपन में ही दुःख से बहुत डरा दिया गया है। हम कभी उसे लेकर कम्फ़्टर्बल नहीं होते। जबकि अगर ज़िंदगी की टाइम्लायन देखें तो वो समय जब हम सच में दुःख के किसी लम्हे के ठीक बीच थे, बहुत कम होते हैं। हम अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा आगत दुःख के भय और प्राचीन दुःख की स्मृति में जीते हैं।

तो इस दुःख के ठीक बीच होते हुए मैं ज़रा सा एकांत तलाशती हूँ, कि इसे ठीक से निरख सकूँ। मैं पहले हॉरर फ़िल्मों से बहुत ज़्यादा डरती थी, लेकिन कुछ दिन पहले हॉरर फ़िल्म देख रही थी तो मैंने पहली बार हिम्मत कर के उस भूत को खुली आँखों से पूरा देख लिया, बिना अफ़ेक्टेड हुए, जैसे कि कोई पेंटिंग देखती हूँ। इक तरह से मैंने ख़ुद को उस फ़िल्म के बाहर ठीक उस दर्शक की जगह पर रखा, जहाँ मुझे होना चाहिए था…फ़िल्म के भीतर के भुक्तभोगी की तरह नहीं। उसके बाद जब भी वह भूत आता तो मुझे डर नहीं लगता। जब आँखें बंद कर के घबरा रहे होते हैं तो हम नहीं जानते कि वो क्या है जिससे हम इतना डर रहे हैं। जिस चीज़ की शिनाख्त हो जाती है, वो थोड़ा कम भयावह हो जाता है। भिंची आँखों को सब कुछ ही डराता है।

आज इसी तरह आँखें खोल कर तुम्हें जाते हुए देखा। तुम्हें मुड़ के न देखते हुए देखा। तुम्हें मालूम मैं क्या लिख कर डिलीट कर रही थी? ‘Hug?’. कितनी बार डिलीट किया। कि विदा कहते हुए कहाँ पता था कि इसे विदा कहते हैं। पता होता तो जाने क्या करती। कि जब कि मैं थी ऐसी कि हर बार विदा कहते हुए सोचती थी कि ये आख़िरी बार है, फिर भी ज़रा सी कोई कसक रह गयी है बाक़ी। ये ‘ज़रा सा’ थोड़ा कम दुखना चाहिए था। तुम्हारा हाथ एक मिलीसेकंड और पकड़े रखने का मन था। मिलीसेकंड समझते हो तुम? जितनी देर तुमने मुझे देखा, ये वो इकाई है… मिलीसेकंड। तुम एकदम ही पर्फ़ेक्ट हो। कुछ भी ग़लत नहीं हो सकता तुमसे। सिवाए विदा कहने के। तुम्हें ना, ठीक से विदा कहना नहीं आता।

ज़रा सी विरक्ति सिखा देना बस। मेरे सब दोस्त मेरे जैसे ही पागल हैं…ज़रा से इश्क़ में पूरा मर जाने वाले। ये मौसम और ये शहर ठीक नहीं है उदास होने के लिए। अलविदा का मौसम किसी और रंग में खिलता है, सेमल और पलाश रंग में नहीं। फिर दुनिया में कितने शहर हैं जिनमें दोस्तों से मिल कर बिछड़ा जा सकता है। महबूबों से भी। सिवाए दिल्ली के। लेकिन ये भी तो है कि शहर दिल्ली के सिवा कोई भी और होता तो किरदार बीच कहानी में ही मर जाता।

मेरी जान,
इस दिलदुखे शहर से मेरे हिस्से की सारी मुहब्बत और उसके बाद की सारी उदासियाँ तुम्हारे नाम। Know you are loved. Not as much as you would want, but more than you assume. किसी रोज़ मेरे लिए भी इतना ही आसान होगा लौट पाना। मैं उस दिन की कल्पना से ख़ौफ़ खाती हूँ।

शहर तुम्हारे लिए उदार रहे। रक़ीब आपस में क़त्ले-आम मचाएँ। मुहब्बत अपनी शिनाख्त करवाती फिरे, कई कई सबूत जमा करवाए। फिर मेरे लिखने की शर्त यही है कि दिल टूटना ज़रूरी है तो, मेरी जान, दास्तान मुकम्मल हो। आमीन।

हाँ सुनो, मेरे वो काढ़े हुए रूमाल किसी दिन लाइटर मार के ख़ाक कर देना। मेरी वो दोस्त सही कहती थी, रूमाल देने से दोस्ती टूट जाती है। मुझे उसकी बात मान लेनी चाहिए थी।

Love,
तुम्हारी….
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Published on March 24, 2019 08:42
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