किताब ये जो देश है मेरा पर साकेत सहाय की प्रतिक्रिया
डॉ साकेत सहाय राष्ट्रपति जी के हाथों हिंदी की सेवा के लिए पुरस्कृत हो चुके हैं. खुद लेखक और अनुवादक भी हैं. पर साथ ही मेरे मित्र भी हैं. उन्होंने मेरी किताब ये जो देश है मेरा पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया फेसबुक के जरिए पोस्ट की, तो उसे यहां बांटने का लोभ संवरण नहीं कर पाया. मेरे मित्र हैं तो तारीफ भी ज्यादा की होगी. साकेत भाई का शुक्रियाः मंजीत
आज, भाई मंजीत ठाकुर जी की रचना ‘ये जो देश है मेरा’ पढ़ी. सच मायनों में किसी पुस्तक का शीर्षक ही उसके भीतर के पन्नों का आईना होती है. इस मायने में यह पुस्तक अपने शीर्षक के साथ न्याय करती नजर आती है. जनसामान्य की समस्याओं को समर्पित उनकी यह रचना विशिष्ट कही जा सकती है. रिपोर्ताज की शक्ल में उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन के अनुभवों एवं जनजुड़ाव के पक्ष को इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया है.
वास्तव में सच्चा पत्रकार वही होता है जो अपनी रिपोर्टों के माध्यम से उस खबर को जीता है. इस नजरिए से देखें तो पत्रकार समाज के नायक, सुधारक के रूप में उभरता है. क्योंकि वह अपनी सार्थक रिपोर्टों के माध्यम से समाज के समक्ष वास्तविक चित्र प्रस्तुत करता है. पुस्तक ‘ये जो देश है मेरा’ के माध्यम से लेखक इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए उभरते हैं. पुस्तक में लेखक ने बुंदेलखंड, कूनो पालपुर, नियमागिरि, सतभाया, लालगढ़ आदि क्षेत्रों की विभिन्न समस्याओं को रेखांकित किया है. जो कि विकास की नई परिभाषा के कारण इन क्षेत्रों में उपजी है.
पुस्तक में सामाजिक-विकासात्मक रिपोर्टिंग को भी नए ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसे विकासशील देशों के संचार माध्यमों को समझना होगा. साथ ही वे अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से सांस्कृतिक पहुलूओं की भी बात करते है.
देश में उदारीकरण के बाद से एक लंबी विभाजक रेखा खिंचती चली जा रही है. पुस्तक वनवासी, आदिवासी, दलित, वंचित आबादी, जो इस विभाजक रेखा से ज्यादा प्रभावित हुए हैं की समस्याओं के बारे में सही चित्र प्रस्तुत करती है.
एक अच्छी रिपोर्ताज पुस्तक के लिए बधाई! पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है.
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आज, भाई मंजीत ठाकुर जी की रचना ‘ये जो देश है मेरा’ पढ़ी. सच मायनों में किसी पुस्तक का शीर्षक ही उसके भीतर के पन्नों का आईना होती है. इस मायने में यह पुस्तक अपने शीर्षक के साथ न्याय करती नजर आती है. जनसामान्य की समस्याओं को समर्पित उनकी यह रचना विशिष्ट कही जा सकती है. रिपोर्ताज की शक्ल में उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन के अनुभवों एवं जनजुड़ाव के पक्ष को इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया है.
वास्तव में सच्चा पत्रकार वही होता है जो अपनी रिपोर्टों के माध्यम से उस खबर को जीता है. इस नजरिए से देखें तो पत्रकार समाज के नायक, सुधारक के रूप में उभरता है. क्योंकि वह अपनी सार्थक रिपोर्टों के माध्यम से समाज के समक्ष वास्तविक चित्र प्रस्तुत करता है. पुस्तक ‘ये जो देश है मेरा’ के माध्यम से लेखक इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए उभरते हैं. पुस्तक में लेखक ने बुंदेलखंड, कूनो पालपुर, नियमागिरि, सतभाया, लालगढ़ आदि क्षेत्रों की विभिन्न समस्याओं को रेखांकित किया है. जो कि विकास की नई परिभाषा के कारण इन क्षेत्रों में उपजी है.
पुस्तक में सामाजिक-विकासात्मक रिपोर्टिंग को भी नए ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसे विकासशील देशों के संचार माध्यमों को समझना होगा. साथ ही वे अपनी रिपोर्टिंग के माध्यम से सांस्कृतिक पहुलूओं की भी बात करते है.
देश में उदारीकरण के बाद से एक लंबी विभाजक रेखा खिंचती चली जा रही है. पुस्तक वनवासी, आदिवासी, दलित, वंचित आबादी, जो इस विभाजक रेखा से ज्यादा प्रभावित हुए हैं की समस्याओं के बारे में सही चित्र प्रस्तुत करती है.
एक अच्छी रिपोर्ताज पुस्तक के लिए बधाई! पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है.
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Published on December 17, 2018 08:47
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