हसरतों के शहर

वक़्त उड़ता चला जाता है, हमें ख़बर नहीं होती। इन दिनों कुछ पढ़ लिख नहीं पा रही। एक पैराग्राफ़ से ज़्यादा दिमाग़ में कुछ अटकता ही नहीं। कितनी किताबें पढ़ पढ़ के रख दीं, आधी अधूरी। सब में कोई ना कोई दिक़्क़त लग रही है। कविताएँ भी उतनी पसंद नहीं आ रही हैं जितनी आती थीं।
दरअसल दो महीने से ऊपर होने को आए घर में रहते हुए। हमारे जैसा घुमक्कड़ इंसान घर में रह नहीं सकता इतने दिन। टैक्सी पर निर्भर रहना। मुश्किल से कहीं जाना। फ़िल्म वग़ैरह भी बंद है।
कल बहुत दिन बाद काग़ज़ क़लम से लिखे। बहुत अच्छा लगा। धीरे धीरे ही सही, लौट आएँगे सारे किरदार। लिखना भी इसलिए। कि धीरे धीरे धुन लौटेगी। किसी धुंध के पीछे से ही सही।
निर्मल को पढ़ती हूँ फिर से...लगता है उनके सफ़र में कितना कुछ सहेजते चलते थे वो। इन दिनों अक्सर ये ख़याल आता है कि जेंडर पर बात कम होती है लेकिन कितनी चीज़ें हैं जो पुरुषों के लिए एकदम आसान है लेकिन एक स्त्री होने के कारण उन्हीं चीज़ों को करना एक जंग लड़ने से कम नहीं होता हमारे लिए। सबसे ज़रूरी अंतर जो आता है वो सफ़र से जुड़ा हुआ है। अपने देश में सोलो ट्रिप आज भी किसी औरत के लिए प्लान करना बहुत मुश्किल है। चाहे वो उम्र के किसी पड़ाव पर रही हो। अकेले सफ़र करना, होटल के कमरे में अकेले रहना या के अकेले घूमना ही। सुरक्षा सबसे बड़ी चीज़ हो जाती है। सड़कें, शहर, रहने की जगहें...'अकेली लड़की खुली तिजोरी के समान होती है' के डाइयलोग पर लोग हँसे बहुत, लेकिन ये एकदम सच है। इससे हम कितने कुछ से वंचित रह जाते हैं। मेरी जानपहचान में जितने लड़के हैं, इत्तिफ़ाक़ से वे कुछ ऐसे ही घुमक्कड़ रहे हैं। मैं देखती हूँ उन्होंने कितनी जगहें देख रही हैं कि सफ़र उनके लिए हमेशा बहुत आसान रहा। चाहे देश के छोटे शहर हों या विदेश के अपरिचित शहर।
मुझे आज ये बात इस तरह इसलिए भी साल रही है कि पिछले साल इसी दिन मैं न्यू यॉर्क गयी थी। मेरा पहला सोलो ट्रिप। मैं अकेली गयी थी, अकेली होटल में ठहरी थी, अकेली घूमी थी शहर और म्यूज़ीयम। उस ट्रिप ने मुझे बहुत हद तक बदल दिया। मैं ऐसे और शहर चाहती हूँ अपनी ज़िंदगी में। ऐसे और सफ़र। कि मुझे दोस्तों और परिवार के साथ घूमना अच्छा लगता है लेकिन मुझे अकेले घूमना भी अच्छा लगता है। ऐसे कई शहर हैं जो मैं अकेली जाना चाहती हूँ।
१. फ्नोम पेन (Phnom Penh) कम्बोडिया की राजधानी। जब से In the mood for love देखी है इस शहर जा कर अंगकोर वात देखने की तीव्र इच्छा जागी है। मैं अकेले जाना चाहती हूँ ताकि फ़ुर्सत में देख सकूँ, ठहर सकूँ और कैमरा से तस्वीरें खींच सकूँ। २. कन्नौज। बहुत दिन पहले एक सुंदर आर्टिकल पढ़ी थी मिट्टी अत्तर के बारे में। कन्नौज तब से मेरी सोलो ट्रिप की लिस्ट में है। मैं यहाँ अकेले जाना चाहती हूँ और इस इत्र को बनाने वाले लोगों से मिलना चाहती हूँ। ये इत्र गरमियों में बनता है, इस साल तो जाने का वक़्त बीत चुका है। अगले साल देखते हैं। कन्नौज में घुमाने के लिए एक दोस्त ने वोलंटियर भी किया है कि उसके घर के पास है शहर। ३. पौंडीचेरी. मैं बैंगलोर से कई बार जा चुकी हूँ लेकिन हमेशा दोस्तों या परिवार के साथ। मैं वहाँ अकेले जा कर कुछ दिन रहना चाहती हूँ। अपने हिसाब से शहर घूमना चाहती हूँ और लिखना चाहती हूँ। ४. न्यू यॉर्क। कई कई बार। मैं वहाँ कोई राइटर फ़ेलोशिप लेकर कुछ दिन रहना चाहती हूँ और उस शहर को जीना चाहती हूँ। कि बेइंतहा मुहब्बत है न्यू यॉर्क से। ५. दिल्ली। मैं दिल्ली जब भी आती हूँ अपने ससुराल में रहती हूँ। मैं कुछ दिन किसी हॉस्टल में रह कर दिल्ली को फ़ुर्सत से देखना चाहती हूँ। लिखना चाहती हूँ कुछ क़िस्से। ६. मनाली। बचपन में मनाली गयी थी तो हिडिंबा देवी के मंदिर जाते हुए सेब के बाग़ान इतने सुंदर लगे थे। फिर ऊँची पहाड़ी से नीचे देखना भी बहुत ही सुंदर लगा था।  ७. केरल बैकवॉटर्ज़। हाउसबोट में रहना और लिखना। कई और शहर हैं जिनके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं है। पर सोचना चाहती हूँ। रहना चाहती हूँ। जीना चाहती हूँ थोड़ा और खुल कर। 
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Published on September 20, 2018 03:55
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message 1: by Dinesh (new)

Dinesh Charan बहुत अच्छा लिखा आपने।


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