डार्क नाइट - पुस्तक अंश 5

Dark Night by Sandeep Nayyar
अगले दिन का प्लेटाइम कबीर के लिए एक सुखद आश्चर्य लेकर आया। हालाँकि प्लेटाइम उसके लिए कुछ ख़ास प्लेटाइम नहीं हुआ करता था। हिकमा वाली घटना के बाद वह हर उस चीज़ से बचने की कोशिश करता था जो उसे किसी परेशानी या दिक्कत में डाल सके, यानि लगभग हर चीज़ से। उस दिन भी वह अकेले ही बैठा था कि उसे हिकमा दिखाई दी, मुस्कुराकर उसकी ओर देखते हुए। कबीर को हिकमा की मुस्कुराहट का राज़ समझ नहीं आया। उसे तो कबीर से नाराज़ होना चाहिए था, और नाराज़गी में मुस्कान कैसी? मगर उसकी मुस्कुराहट के बावज़ूद कबीर के लिए उससे नज़रें मिलाना कठिन था। उसने तुरंत पलकें झुकाईं और आँखें दूसरी ओर फेर लीं। या यूँ कहें कि पलकें अपने आप झुकीं और आँखें फिर गईं। मगर ऐसा होने पर उसे थोड़ा बुरा भी लगा। सभ्यता का तकाज़ा था कि जब हिकमा मुस्कुराकर देख रही थी तो एक मुस्कान कबीर को भी लौटानी चाहिए थी। मगर एक तो उसकी हिम्मत हिकमा से आँखें मिलाने की नहीं हो रही थी, दूसरा हिकमा के थप्पड़ की वजह से थोड़ी सी नाराज़गी उसे भी थी और तीसरा कूल का ऐटिटूड दिखाने का सुझाव।
अभी कबीर यह तय भी नहीं कर पाया था कि हिकमा की मुस्कुराहट का जवाब किस तरह दे कि उसे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी, ‘हाय कबीर!’
उसने नज़रें उठा कर देखा सामने हिकमा खड़ी थी। उसके होठों पर अपने आप एक मुस्कराहट आ गई और उस मुस्कराहट से निकल भी पड़ा, ‘हाय!’
कबीर ने उठकर एक नज़र हिकमा के चेहरे को देखा, फिर नज़र भर कर देखा, मगर उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे। थोड़ा संभलते हुए उसने कहा, ‘सॉरी हिकमा..’
इतना सुनते ही हिकमा हँस पड़ी, ‘इस बार तुमने मेरा नाम सही लिया है।’
हिकमा के हँसते ही कबीर के मन से थोड़ा बोझ उतर गया और साथ ही उतर गई उसकी बची-खुची नाराज़गी।
‘आई एम सॉरी..’ इस बार उसने हल्के मन से कहना चाहा।
‘डोंट से सॉरी, मुझे पता है कि ग़लती तुम्हारी नहीं थी।’ हिकमा ने अपनी मुस्कराहट बरकरार रखते हुए कहा।
हिकमा से यह सुनकर कबीर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।
‘तुम्हें कैसे पता चला?’ वह लगभग चहक उठा।
‘कबीर मेरे साथ इस तरह के मज़ाक होते रहते हैं। मेरा नाम ही कुछ ऐसा है। मगर जब मुझे पता चला कि तुम यहाँ नए हो मुझे लगा कि यह किसी और की शरारत रही होगी।’
‘थैंक यू’ ख़ुशी कबीर के चेहरे पर ठहर नहीं रही थी। हिकमा के लिए उसका प्यार और भी बढ़ गया।
‘कबीर आई एम सॉरी दैट...’
‘नो नो...प्लीज़ डोंट से सॉरी, इट्स आल राईट।’
वही हुआ जो कबीर ने सोचा था। वह हिकमा को ऐटिटूड दिखा नहीं सका। हिकमा ने उसे माफ़ कर दिया, उसने हिकमा को माफ़ कर दिया। अब बात आगे बढ़ानी थी। कबीर ने बेसब्री से हिकमा की ओर मुस्कुराकर देखा कि वह कुछ और कहे।
‘अच्छा बाय, क्लास का टाइम हो रहा है।’ उसने बस इतना ही कहा और पलट कर अपने क्लास रूम की ओर बढ़ गई।
हिकमा से कबीर ने जो कुछ सुना और उससे जो कुछ कहा उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। कबीर के लिए हिकमा से इतना सुनना भी बहुत था कि वह उससे नाराज़ नहीं थी। मगर फिर भी वह उससे और भी बहुत कुछ सुनना चाहता था, उसे और भी बहुत कुछ कहना चाहता था।

अगले कुछ दिन प्ले-टाइम और डिनर ब्रेक में कबीर की नज़रें हिकमा से मिलती रहीं। हिकमा कबीर को देख कर मुस्कुराती और कबीर उसे देख कर मुस्कुराता। इससे अधिक कुछ और न हो पाता। प्ले-टाइम में हिकमा अपने साथियों के साथ होती। कबीर अक्सर अकेला ही होता। हालांकि कबीर ने कूल को माफ़ कर दिया था। हैरी से भी उसे कोई ख़ास नाराज़गी नहीं थी। फिर भी उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता। डिनर ब्रेक में भी वे अलग-अलग ही बैठते। हिकमा डिनर थी, कबीर सैंडविच था।
एक दिन कबीर ने हिकमा को अकेले पाया। इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता था उससे बात करने का। कुछ हिम्मत बटोर कर कबीर उसके पास गया।
‘हाय!’
‘हाय!’ हिकमा ने मुस्कुराकर कहा।
‘हाउ आर यू?’
‘आई एम फाइन, थैंक्स।’
हिकमा का थैंक्स कहना कबीर को थोड़ी औपचारिकता लगा। उसके आगे उसे समझ नहीं आया कि वह क्या कहे। कुछ देर के लिए उसका दिमाग बिल्कुल ब्लैंक रहा फिर अचानक उसके मुँह से निकला, ‘डू यू लाइक बटाटा वड़ा?’
‘बटाटा वड़ा?’ हिकमा ने आश्चर्य से पूछा।
‘हाँ बटाटा वड़ा।’
‘ये क्या होता है?’
‘आलू से बनता है, स्पाइसी, डीप फ्राई।’
‘यू मीन समोसा?’
‘नहीं नहीं, समोसे में मैदे की कोटिंग होती है, ये बेसन से बनता है।’
‘ओह आई नो व्हाट यू मीन।’
‘खाओगी?’
‘अभी?’ हिकमा के चेहरे पर हैरत में लिपटी मुस्कान थी।
‘नहीं फिर कभी।’ उस समय घड़ी में दोपहर के दो बजे थे मगर कबीर के चेहरे पर बारह बजे हुए थे। वह सोच कुछ और रहा था और कह कुछ और रहा था। उसकी हालत देखकर हिकमा की हँसी छूट गई। कबीर को और भी शर्म महसूस हुई।
‘अच्छा, बाय।’ कबीर ने घबराकर कहा और वहाँ से लौट आया।
हिकमा के चेहरे पर हँसी बनी रही।

पंद्रह साल की उम्र वह उम्र होती है जिसमें कोई लड़का कभी किसी हसीन दोशीजा की जुस्तजू में समर्पण कर देना चाहता है और कभी किसी इंकलाब की आरज़ू में बगावत का परचम उठा लेना चाहता है। मगर इन दोनों चाहों के मूल में एक ही चाह होती है, ख़ूबसूरती की चाह। कभी आइने में झलकते अपने ही अक्स से मुहब्बत हो जाना तो कभी अपनी कमियों और सीमाओं से विद्रोह पर उतर आना, सब कुछ अनंत के सौन्दर्य को ख़ुद से लपेट लेने और ख़ुद में समेट लेने की क़वायद सा होता है। यह कभी नीम-नीम और कभी शहद-शहद सी क़वायद इंसान को कहाँ ले जाती है वह काफ़ी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि जिस मिट्टी पर यह क़वायद हो रही है वह कितनी सख्त है या कितनी नर्म। कबीर के लिए उस वक्त लंदन और उसकी अन्जानी तहज़ीब की मिट्टी काफ़ी सख्त थी जिस पर पाँव जमाने में उसे कुछ वक्त लगना था।

‘सरकार अंकल साबूदाना है’ कबीर ने भारत सरकार की दुकान पर उनसे पूछा। कबीर की माँ का उपवास था और उन्होंने कबीर को साबूदाना लाने भेजा था।
‘एक मिनट वेट कोरो, बीशमील शे माँगाता है।’ सरकार ने कहा।
‘बीस मील से आने में तो बहुत समय लग जाएगा, एक मिनट में कैसे आएगा?’ कबीर ने भोलेपन से कहा।
‘हामारा नौकर है बीशमील। बीशमील पीछे शे शॉबूदाना लाना।’ सरकार ने आवाज़ लगाई।
कबीर को समझ आ गया कि सरकार बिस्मिल को बीशमील कह रहा था।
कबीर साबूदाना के आने का इंतज़ार कर रहा था कि उसे दुकान के भीतर हिकमा आती दिखाई दी। कबीर हिकमा को देखकर ख़ुशी से चहक उठा, ‘हाय हिकमा!’
‘हाय कबीर, हाउ आर यू?’
‘मैं अच्छा हूँ, तुम क्या लेने आई हो?’
‘बेसन, इन्टरनेट पर बटाटा वड़ा की रेसिपी पढ़ी है, आज बनाऊँगी।’
‘तुम बनाओगी, बटाटा वड़ा?’ कबीर ने आश्चर्य में डूबी ख़ुशी से पूछा। कबीर को ख़ुशी इस बात की थी कि हिकमा ने उसकी बात को गंभीरता से लिया था, वर्ना उसे तो यही लग रहा था कि उसने हिकमा के सामने अपना ख़ुद का मज़ाक उड़ाया था।
‘हाँ, तुम्हें यकीन नहीं है कि मैं कुक कर सकती हूँ?’
‘बना कर खिलाओगी तो यकीन हो जाएगा।’
‘ठीक है, कल स्कूल लंच में तुम मेरे हाथ का बना बटाटा वड़ा खाना।’
कबीर ने हिकमा को बटाटा वड़ा खिलाने के लिए तो कह दिया पर उसे फिर से स्कूल में अपना मज़ाक उड़ाए जाने का डर लगने लगा। इसी मज़ाक के डर से वह लंचबॉक्स में भारतीय खाना ले जाने की जगह सैंडविच ले जाने लगा था। लेकिन वह हिकमा के साथ बैठ कर उसके हाथ का बना बटाटा वड़ा खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। उसने मुस्कुराकर कहा, ‘थैंक यू सो मच, और हाँ चाहे तो इसे टिप समझो या फिर रिक्वेस्ट मगर उसमें मीठी नीम ज़रूर डालना’
‘मीठी नीम?’ हिकमा ने शायद मीठी नीम का नाम नहीं सुना था।
‘करी लीव्स।’ कबीर ने स्पष्ट किया।

अगले दिन कबीर लंच में हिकमा के साथ बैठा था। वह अपने लंचबॉक्स में माँ के हाथ का बना आलू टिक्की सैंडविच लाया था। मगर उसकी सारी दिलचस्पी हिकमा के हाथ के बने बटाटा वड़ा में थी। हिकमा ने लंचबॉक्स खोला। लहसुन, अदरक और मीठी नीम की मिलीजुली खुशबू उसके डब्बे से उड़ी। कबीर को वह खुशबू भी ऐसी मादक लगी मानो हिकमा के शरीर से उड़ी किसी परफ्यूम की खुशबू हो। हिकमा ख़ुद डिनर थी। बटाटा वड़ा तो वह बस कबीर के लिए ही लाई थी।
‘वाह, अमेज़िंग! दिस इज़ रियली वेरी टेस्टी।’ कबीर ने बटाटा वड़ा का एक टुकड़ा खाते हुए कहा।
‘तुमने जो कुकिंग टिप दिया था ना, मीठी नीम डालने का, उससे और भी टेस्टी हो गया।’ हिकमा ने एक मीठी मुस्कान से कहा।
‘हे बटाटा वड़ा!’ अचानक दो टेबल दूर बैठे कूल की आवाज़ आई। कबीर ने उसे देखकर गन्दा सा मुँह बनाया और फिर किसी तरह अपनी भावभंगिमा ठीक करने की कोशिश करते हुए हिकमा की ओर देखा।
‘तुम कबीर को बटाटा वड़ा क्यों कहते हो?’ हिकमा ने कूल से पूछा। उसकी आवाज़ में हल्का सा गुस्सा था।
‘क्योंकि इसे बटाटा वड़ा पसंद है।’ कूल ने हँसते हुए कहा।
‘तब तो तुम्हारा नाम तंदूरी चिकन होना चाहिए।’ हिकमा ने एक ठहाका लगाया। हिकमा के साथ कबीर और कूल भी हँस पड़े।
‘और तुम्हें क्या कहना चाहिए?’ कूल ने आँखें मटकाते हुए पूछा।
‘मीठी नीम।’ हिकमा ने फिर वही मीठी मुस्कान बिखेरी। कबीर बहुत देर तक उस मीठी मुस्कान को देखता रहा।
‘इतनी अच्छी कुकिंग कहाँ से सीखी?’ कबीर ने हिकमा की मुस्कान पर नज़रें जमाए हुए ही पूछा.
‘मेरे डैड कश्मीरी हैं और मॉम इंग्लिश हैं। डैड को इंडियन खाना बहुत पसंद है और मॉम को इंडियन कुकिंग नहीं आती थी। इसलिए मॉम कुकिंग बुक्स और मैगज़ीन्स में रेसिपी पढ़ कर खाना बनाती थीं। घर पर हर वक्त ढेरों कुकिंग बुक्स और मैगज़ीन्स होती थीं। उन्हें पढ़ पढ़ कर मुझे भी कुकिंग का शौक हो गया।’
‘ओह नाइस।’ कबीर को अब जाकर हिकमा के गोरे गुलाबी गालों का राज़ समझ आया।
‘तुम भी कुकिंग करते हो?’ हिकमा ने पूछा।
‘मैं बस अंडे उबाल लेता हूँ।’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘टिपिकल इंडियन बॉय।’ हिकमा भी हँस पड़ी।

कुछ दिनों बाद कबीर के मामा-मामी यानि समीर के माता-पिता कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गए, समीर को घर पर अकेला छोड़ कर। समीर जब घर पर अकेला होता था तो घर घर नहीं रहता था बल्कि क्लब हाउस होते हुए मैड हाउस बन जाता था। उस बार भी वैसा ही हुआ। समीर ने अपने साथियों को हाउस पार्टी पर अपने घर बुलाया। कबीर तो खैर वहाँ मौजूद था ही। आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि ब्रिटेन की टीनऐज पार्टियों में क्या होता है। टीनऐज पार्टियाँ हर जगह एक जैसी ही होती हैं। जब सोलह सत्रह साल के लड़के-लडकियाँ मिलते हैं तो वे आपकी और मेरी तरह किस्से सुनते-सुनाते नहीं हैं बल्कि अपनी सरगर्म हरकतों से किस्से रचते हैं। उस रात भी उस पार्टी में एक ख़ास किस्सा रचा गया।
टीनएज पार्टियों में दो चीज़ें अनिवार्य होती हैं, एक तो संगीत और दूसरी शराब। संगीत वही होता है जिस पर थिरका जा सके। मगर वैसा संगीत न भी हो तो भी जवान लड़के-लडकियाँ ख़ुद ही अपनी ताल पैदा कर लेते हैं। और जब शराब भीतर जाए तो फिर वो किसी ताल के मोहताज़ भी नहीं रहते। कुछ ही देर में वे या तो जोड़ो में बँट जाते हैं, या जोड़े बनाने में मशगूल हो जाते हैं और पार्टी खत्म होते तक कुछ नए जोड़ो की ताल मिल जाती है और कुछ पुराने जोड़ों की ताल टूट जाती है।
समीर के घर संगीत का इंतज़ाम तो पहले से ही था, सोनी का होम थिएटर बोस के स्पीकर्स के साथ। शराब का इंतज़ाम भी उसने कर लिया था। हालांकि ब्रिटेन में अठारह उम्र से कम के बच्चों का शराब खरीदना और माता-पिता की मर्ज़ी के बिना शराब पीना गैर-कानूनी है मगर समीर ने बिस्मिल के ज़रिये भारत सरकार की दुकान से शराब मंगा ली थी। वैसे बिस्मिल मज़हबी कारणों से ख़ुद शराब नहीं पीता था, मगर ऊपर से पैसे लेकर गैरकानूनी तरह से शराब बेचने में उसे कोई दिक्कत नहीं थी।

लगभग सात बजे समीर के साथी आना शुरू हुए। सबसे पहले आई टीना। टीना समीर की गर्लफ्रेंड थी। लम्बी गोरी सिख्खनी, यानि पंजाबी सिख लड़की।
‘हाय कबीर!’ टीना ने कबीर को देख कर हाथ आगे बढ़ाया।
कबीर को टीना को देख कर बहुत कुछ होता था। उसकी धड़कनें तेज़ हो जाती थीं और आँखें चोरबाज़ारी करने लगती थीं। मगर वह टीना से हाथ मिलाने का कोई मौका हाथ से जाने न देता। इस बार भी उसने तपाक से हाथ बढ़ाया, या यूँ कहें कि हाथ ख़ुद-ब-ख़ुद बढ़ गया। मगर टीना का हाथ छूते ही उसकी धडकनें कुछ इस तेज़ी से बढ़ीं कि उसे लगा कि अगर तुरंत हाथ न हटाया तो उसका दिल सीने से उछल कर टीना के पैरों में जा गिरेगा। सो हाथ जिस तेज़ी से बढ़ा था उसी तेज़ी से पीछे भी आ गया। वैसे उसे ब्रिटेन की लड़कियों में यह बात बहुत अच्छी लगती थी, लड़कों से हाथ मिलाने में कोई शर्म या संकोच न करना और थोड़ी निकटता बढ़ने पर गले मिलने में भी वही तत्परता दिखाना। उस रात की पार्टी से कबीर यही उम्मीद लगाए हुआ था कि समीर की सखियों से उसकी निकटता गले लगने तक बढ़े।

थोड़ी ही देर में समीर के दूसरे साथी भी आना शुरू हो गए। कुछ जोड़ों में थे और कुछ अकेले थे। जो जोड़ों में थे उनके हाथ एक दूसरे की बाँहों या कमर में लिपटे हुए थे और जो अकेले थे उनके हाथ बोतलों पर लिपटे हुए थे, कुछ शराब की और कुछ कोकाकोला या स्प्राइट की, जिनके भीतर भी शराब ही थी। जो लडकियाँ अपने बॉयफ्रेंड के साथ थीं उन्होंने बहुत छोटे और तंग कपड़े पहने हुए थे, जो लडकियाँ अकेली थीं उन्होंने उनसे भी छोटे और तंग कपड़े पहने हुए थे। कबीर ने इतनी सारी और इतनी खूबसूरत लड़कियों को इतने कम और तंग कपड़ों में अपने इतने करीब पहली बार देखा था। उसे बचपन के वो दिन याद आने लगे जब वह किसी केक या पेस्ट्री की शॉप में पहुँच कर वहाँ सजी ढेरों रंग-बिरंगी, क्रीमी, फ्रूटी, चॉकलेटी पेस्ट्रियों को देख कर दीवाना हो जाता था और मुँह में भरा पानी कभी कभी लार के रूप में छलक कर टपक भी पड़ता था। मगर फ़र्क यह होता था कि वहाँ उसे एक या दो पेस्ट्री खरीद दी जाती जो मुँह के पानी में घुल कर उसकी लालसा पूरी कर जाती। यहाँ उसे अपनी लालसा पूरी करने की ऐसी कोई गुंज़ाइश नहीं दिख रही थी।

पार्टी शुरू हुई और युवा ऊर्जा चारों ओर बिखरने लगी। म्यूज़िक लाउड था और उस पर थिरकते क़दम तेज़ थे। लड़के-लड़कियों के हाथ कभी एक दूसरे की कमर जकड़ते तो कभी बियर की बोतल या शराब के प्याले पकड़ने को लपकते। उनके होंठ शराब के कुछ घूँट भीतर उड़ेलने को खुलते और फिर जाकर अपने साथी के होंठों पर चिपक जाते। धीरे-धीरे शराब उनके कदमों की ताल बिगाड़ने लगी और कुछ देर बाद सिर चढ़ कर बोलने लगी।
अचानक ही एक लड़का लहराकर फर्श पर गिरा और लोटने लगा। उसे गिरता देख कबीर घबराकर चीख उठा, ‘इसे क्या हुआ?’
‘नथिंग, ही जस्ट वांट्स टू लुक अंडर गर्ल्स स्कर्ट्स।’ समीर ने हँसते हुए कहा।
‘व्हाट कलर आर हर पैंटीज़, टेल मी व्हाट कलर आर हर पैंटीज़, ब्लैक इज़ सेक्सी, सेक्सी, ब्लू इज़ क्रेज़ी, क्रेज़ी...’ नशे में धुत्त एक लड़के ने गाना शुरू किया।
‘गाएस स्टॉप दिस, आई नीड टॉयलेट।’ अचानक टीना की चीखती हुई आवाज़ आई।
‘ओए किसी को टॉयलेट आ रही हो तो इसे दे दो, शी नीड्स टॉयलेट।’ एक सिख लडके ने ठहाका लगाया।
‘शटअप, देयर इज़ समवन इन द टॉयलेट फॉर पास्ट ट्वेंटी मिनट्स।’ टीना फिर से चीखी।
‘आर यू होल्डिंग योर पी फॉर ट्वेंटी मिनट्स? गाएस लेट्स हैव ए होल्ड योर पी चैलेन्ज।’ सिख लड़के ने बाएँ हाथ से अपनी टाँगों के बीच इशारा किया।
‘टीना, पिस ऑन दिस गाए’ किसी ने फ़र्श पर लोट रहे लड़के की ओर इशारा किया, ‘ही हैस फेटिश फॉर गर्ल्स पिसिंग ऑन हिम।’
फ़र्श पर लोटता हुआ लड़का पीठ के बल सरकते हुए टीना के पैरों के पास पहुँचा और गाने लगा, ‘पिस ऑन माइ लिप्स एंड टेल मी इट्स रेनिंग, पिस ऑन माइ लिप्स एंड टेल मी इट्स रेनिंग...’
‘पिस ऑफ्फ़!’ टीना ने उसके बायें कंधे को ठोकर मारी और दौड़ती हुई किचन के रास्ते से बैकगार्डन की ओर भागी।
इसी बीच कबीर को भी ज़ोरों से पेशाब लगी। दो चार बार टॉयलेट का दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी जब भीतर से दरवाज़ा न खुला तो वह भी बैकगार्डन की ओर भागा। गार्डन में अँधेरे में डूबी शांति थी। भीतर के शोर शराबे के विपरीत बाहर की शांति कबीर को काफ़ी अच्छी लगी। हल्की मस्ती से चलते हुए, बाएँ किनारे पर एक घनी झाड़ी के पास पहुँच कर उसने जींस की ज़िप खोली और अपने ब्लैडर का प्रेशर हल्का करने लगा।
‘हे हू इज़ दिस इडियट? व्हाट आर यू डूइंग?’ झाड़ी के पीछे से किसी लड़की की चीखती हुई आवाज़ आई।
कबीर ने झाड़ी के बगल से झाँक कर देखा, पीछे टीना बैठी हुई थी। उसकी स्कर्ट कमर पर उठी हुई थी और पैंटी घुटनों पर सरकी हुई थी। कबीर की नज़रें जा कर उसके क्रॉच पर जम गईं।
‘लुक व्हाट हैव यू डन इडियट।’ टीना ने अपने सीने की ओर इशारा किया। कबीर ने देखा कि टीना के टॉप के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे और उसके स्तन भीगे हुए थे।
‘यू हैव वेट मी विद योर पिस, कम हियर।’ टीना ने गुस्से से कहा।
कबीर घबराता हुआ टीना की ओर बढ़ा। अचानक उसका पैर झाड़ी में अटका और वह लड़खड़ा कर टीना के ऊपर जा गिरा। इससे पहले कि कबीर संभल पाता टीना ने उसके गले में बाँहें डालते हुए उसके चेहरे को खींच कर अपने दोनों स्तन के बीच दबा लिया,
‘नाउ सक योर पिस ऑफ्फ़ माइ ब्रेस्ट्स।’ टीना के होठों से हँसी फूट पड़ी।
कबीर के होश तो पूरी तरह उड़ गए। यह एक ऐसा अनुभव था जिसकी तुलना किसी और अनुभव से करना मुमकिन नहीं था। एक पल को कबीर को ऐसा लगा मानो उसके चेहरे पर कोई मुलायम कबूतर फड़फड़ा रहा हो जिसके रेशमी पंख उसके गालों को सहलाते हुए उसे अपने साथ उड़ा ले जाना चाहते हों, या फिर उसने अपना चेहरा किसी सॉफ्ट-क्रीमी पाइनएप्पल केक में धंसा दिया हो जिसकी क्रीम से निकल कर पाइनएप्पल का मीठा जूस उसके होंठों को भिगा रहा हो। मगर कबीर उन तमाम तुलनाओं के ख़यालों को एक ओर सरकाकर उस वक्त के हर पल की अनुभूति में डूब जाना चाहता था। वैसा सुखद, वैसा खुबसूरत उससे पहले कुछ और नहीं हुआ था। अचानक टीना ने उसके प्राइवेट को जींस की खुली हुई ज़िप से बाहर खींचते हुए अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया। कबीर घबरा उठा। उसे ठीक से समझ नहीं आया कि क्या हो रहा था। टीना के नर्म हाथ उसके कठोर हो चुके प्राइवेट को जकड़े हुए थे। उसके होंठ टीना के मुलायम सीने पर जमे हुए थे। सब कुछ बेहद सुखद था, मगर कबीर के पसीने छूट रहे थे। उस पल में आनंद तो था, मगर उससे भी कहीं अधिक अज्ञात का भय था। अज्ञात का भय आनंद के मार्ग की बहुत बड़ी रुकावट होता है, मगर उससे भी बड़ी रूकावट होता है मनुष्य का ख़ुद को उस आनंद के लायक न समझना। कबीर को यह विश्वास नहीं हो रहा था कि जो हो रहा था वह कोई सपना न होकर एक हक़ीक़त था, और वह उस हक़ीक़त का आनंद लेने के लायक था। उसे चुनना था कि वह उस आनंद के अज्ञात मार्ग पर आगे बढ़े या फिर उससे घबरा कर या संकोच कर भाग खड़ा होए। कबीर के भय और संकोच ने भागना चुना। टीना की पकड़ से ख़ुद को छुड़ाता हुआ वह भाग खड़ा हुआ।
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Published on July 01, 2018 14:30 Tags: dark-night, redgrab-books, sandeep-nayyar
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