मानसिक रूप से असथिर या गंभीर अवसाद में सामानय से उलटा वयवहार करने वाले लोगों को पागल की शरेणी में रखा जाता है। समाज के मानक अनुसार सामानयता का परमाणपतर लेना आसान है - आम वयकति, अपनी आरथिक/सामाजिक सथिति अनुसार हरकतें और आम जीवन। इतनी परतों वाला जीवन कया केवल दो शरेणियों में बाँटा जा सकता है? मेरी एक थयोरी है। हम सब पागल हैं। अंतर केवल इतना है कि किस हद तक, किन बातों पर, किस दशा-माहौल में और किन लोगो के साथ हम खुद पर नियंतरण रख पाते हैं। अकसर शांतचित रहने वाले लोगों को काफी छोटी बात पर बिफरते द...
Published on December 07, 2017 16:26